संयोग से आज ये पढने में आ गया जिसे पढ़ कर बड़ी दया आई उन मरदूदों पर जो सामने से दोस्त बन कर आते हैं और पीठ पीछे घोस्ट की तरह चलते हैं . ये क्या अनर्गल प्रलाप किया है मैं पूरी तरह नहीं समझा हूँ इसलिए मैं चाहता हूँ कि वो सतीश सक्सेना साहब ज़रा ये बताने का कष्ट करें कि जब अलबेला खत्री आपको जानता तक नहीं, तो आपके बारे में क्यों कुछ भी बोलेगा .........ज़बरदस्ती चर्चा में आने के लिए मेरा नाम क्यों घसीट रहे हो प्यारे ?
दिखाओ मुझे वो पोस्ट, जिसमे आपका नाम मैंने लिया .........रही बात मेरे राखी सावंत होने की तो पता नहीं आपने मेरा ऐसा कौन सा अंग देख लिया जो उसके जैसा है क्योंकि मेरी रचना तो कमाल की रचना है भाई . इस रचना में ऐसा कोई खोट नहीं .........ऐसी रचना के साथ आनंद करना चाहिए ..बहस नहीं
http://satish-saxena.blogspot.in/2010/11/blog-post_26.html
तिलयार लेक के इस लेख को "शरीफ ब्लागर" न पढ़ें -सतीश सक्सेना
खुशदीप
भाई फोन करके बताया कि अलबेला खत्री ने, अपनी पोस्ट में तिलयार लेक पर,
रात्रि भोज और पैग शैग के बाद लिखा कि "सतीश सोने चले गए " ! इस पोस्ट से
महसूस होता है कि आप रात में वहाँ मौजूद थे, जबकि आप उस दिन हमारे साथ थे
! इसपर क्या स्पष्टीकरण दोगे ??
ब्लॉगजगत
का राखी सावंत कहलाये जा रहे इस मजाकिया कैरेक्टर के लिखे हुए शब्दों में,
दोधारी धार तो होती ही है ! अपने द्विअर्थी शब्दों से दादा कोंडके को पीछे
छोड़ता यह "कलाकार " वाकई धुरंधर है और आजके रोते पीटते समय और लोगों के
बीच, अगर मुझे वाकई जमीन पर बैठ, उस दिन डिनर का मौका मिला होता तो
मैं अपने आपको घाटे में नहीं मानता !
इस स्पेशल
कैरेक्टर को जानते हुए , मैंने इस पर खुद शिकायत करने से परहेज किया ! खुद
शिकायत करने के बदले में अलबेला का जो जवाब मिलता उसका मुझे अंदाजा था कि
"सतीश जी, उस पार्टी में किचन के रसोइये का नाम भी सतीश था ....हा...हा...हा...हा...."
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (22-07-2013) को गुज़ारिश प्रभु से : चर्चा मंच 1314 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Personal War chal rahi hai.
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