Tuesday, June 25, 2013

नोट : इस रचना का आनंद केवल नेता लोग ही ले सकते हैं



चार चोर मिल कर एक जगह चोरी कर सकते हैं


चार डाकू मिल कर एक जगह डाका डाल सकते हैं


चार ठग मिल कर एक आदमी को ठग सकते हैं


चार झूठे मिल कर एक झूठ का प्रचार कर सकते हैं 




चार गिद्ध मिल कर एक लाश  को चबा सकते हैं


चार कुत्ते  मिल कर एक रोटी को खा  सकते हैं


चार गधे मिल कर एक  खेत को चर सकते हैं


चार मेंढक मिल कर रात भर शोर कर सकते हैं 




चार गुण्डे  मिल कर एक साथ  बलात्कार कर सकते हैं 


चार दलाल मिल कर बाज़ार में अन्धकार कर सकते हैं


चार  भड़वे मिल कर वासना  का कारोबार कर सकते हैं


चार सटोरिये मिल कर  खेलों में व्यभिचार कर सकते हैं



__तो फिर चार खादी वाले मिल कर देश नहीं चला सकते ?  


जबकि उन में इनके सारे गुण, अवगुण और तत्व मौजूद है .


ज़रा सोचिये : 


क्या सारे कांग्रेसी चोर हैं  और क्या सारे भाजपाई  शरीफ हैं ?  नहीं, नहीं, नहीं ! 


तो फिर  झगडा किस बात का  यारो,  अगर देशहित में राजनीति करने का दावा 

करते हो तो इस देश के लिए सभी दल मिल कर एक क्यों नहीं हो जाते ?


चोरी-चोरी, चुपके-चुपके व अलग-अलग  खाने की क्या मज़बूरी है भाई,  ये देश 


हमारा अपना  है .इसे मिल कर खाओ, एक साथ खाओ और दूसरे को खिला  

खिला कर खाओ ताकि  कहीं कोई विरोध होने का डर ही न रहे


जय हिन्द ! 



2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक और सटीक...!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (26-06-2013) को धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....! अंक-१२८८ मे "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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