Tuesday, June 8, 2010

जिसके कारण मैं इसकी कुछ परवाह नहीं करता...........




बहाद्दुर आदमी

जिन दिनों अपने जिस्म पर गहरे घाव नहीं खाता,

वह समझता है कि वे दिन व्यर्थ नष्ट हो गये.........


- तिरुवल्लुवर



मैं पानी के भीषण प्रवाह की तरह अत्यन्त भयंकर अवसरों पर भी

आगे ही बढ़ता हूँमानो मेरे लिए इस जान के अलावा

कोई और जान भी है जिसके कारण मैं इसकी कुछ परवाह नहीं करता

या मुझे इस जान के साथ दुश्मनी है


- मुतनब्बी





4 comments:

Unknown said...

अति सुन्दर विचार!

राजीव तनेजा said...

महत्वपूर्ण सूक्तियां

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आदर्श वाक्यों का सुन्दर संटोजन है आपके पास!

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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