देखो जी प्यारे स्वजनों ! न तो मैंने ढोल बजाया और न ही आतिशबाज़ी
की है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मेरा मन ख़ुश नहीं । भला कौन
ब्लोगर ख़ुश नहीं होता अपनी 1000 वीं पोस्ट पर ?
मैं भी हूँ और बहुत ख़ुश हूँ आज । अब आपको बधाई देनी है तो दो,
नहीं देनी तो मत दो । मैं कोई अन्ना हज़ारे या बाबा रामदेव की भान्ति
अनशन तो कर नहीं सकता आपकी टिप्पणियों के लिए . अरे ये तो
हास्यकवि अलबेला खत्री का ब्लॉग है, कोई BMW यानी बहन
मायावती
का जन्मदिन थोड़े ही है जो मर्ज़ी न मर्ज़ी माला पहनानी ही पड़े ।
हज़ारवीं पोस्ट यहाँ लगी है ...मेरे मुख्य ब्लॉग पर
http://albelakhari.blogspot.com/2011/06/blog-post_30.html
सूचना देना मेरा काम था सो मैंने कर दिया । अब जो दे, उसका भी भला
और जो न दे उसका भी { भला मैं क्या बिगाड़ लूँगा } हा हा हा हा हा
वैसे कहना मत किसी से........इस ब्लॉग पर 1000 पोस्ट तो कभी की
हो जातीं अगर मेरे बहुत सारे ब्लॉग न होते...हो हो हो हो हो
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नंगलाल आज बड़े अच्छे मूड में था । ज्ञान की बातें कर रहा था । जैसे
नियमित रूप से समीरलालजी, कभी कभी राज भाटिया जी और
भूले - चूके से रूपचंद्र शास्त्री जी कर लेते हैं । उसके पिताश्री रंगलाल ने
मौका देख कर सवाल कर दिया - बेटा नंगू ! ये बताओ कि हमारे देश में
एक पत्नी के होते हुए आदमी दूसरी शादी क्यों नहीं कर सकता ।
नंगलाल - ये तो गधा भी बता देगा पापा कि जो आदमी अपनी रक्षा
स्वयं नहीं कर सकता उसकी रक्षा देश का कानून करता है
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नंगलाल ने पूछा - पापा, मैं जब भी शाम को घर से बाहर जाने लगता हूँ
तो मम्मी मना कर देती है, कहती है तू अभी बच्चा है । तो मैं इतना
बड़ा कब होऊंगा जब मम्मी से पूछे बिना घर से बाहर जा सकूँगा ?
रंगलाल ने अपना माथा ठोक लिया और उदास स्वर में कहा - बेटा,
इतना बड़ा तो अभी मैं भी नहीं हुआ हूँ
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रंगलाल ने देखा उनका बेटा नंगलाल लुकछिप कर कोई किताब
पढ़ रहा है । उन्होंने पूछा - क्या पढ़ रहा है रे नंगू ?
नंगलाल - किताब है पापा।
रंगलाल - वो तो मैं भी देख रहा हूँ कि किताब है, पर ये किताब है
कौन सी ?
नंगलाल - किताब का शीर्षक है 'बच्चों का लालन पालन कैसे करें ?'
रंगलाल - तुझे ये सब पढ़ने की क्या ज़रूरत है, तू तो ख़ुद ही
बच्चा है अभी
नंगलाल - इसीलिए तो पढ़ रहा हूँ.........मैं ये जानना चाहता हूँ कि आप
मेरा लालन पालन ढंग से कर रहे हैं या नहीं...हा हा हा हा आहा
परम पूज्य बाबा नंगलालजी को रात के दो बजे तलब लगी और उनका
मन बीड़ी पीने को हुआ । बीड़ी तो उन्हें बाबा रंगलालजी से मिल गई
लेकिन माचिस उनके पास भी नहीं थी।
बाबा नंगलालजी ने माचिस ढूंढी, ख़ूब ढूंढी लेकिन जब पूरी कुटिया में
कहीं माचिस नहीं मिली तो वे खीज गये
और गुस्से में आकर मोमबत्ती बुझा कर सो गये ।
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रंगलाल ने नंगलाल से कहा - बेटा नंगलाल !
रात बहुत हो गई है ...बत्ती बुझादे
नंगलाल - आप आंखें बन्द कर लो और बत्ती बुझ गई है
ऐसा समझ लो
रंगलाल - ठीक है, ये मेरा चश्मा वहां रख दे....
नंगलाल - चश्मा उतारो मत पापा, सोते समय चश्मा लगायेंगे
तो सपने साफ नज़र आयेंगे
रंगलाल - ठीक है बेटा ! पर अलार्म तो लगा दे.........
नंगलाल - पापा कुछ तो इन्साफ कीजिये,
दो बड़े बड़े काम मैंने किये हैं,
ये छोटा सा एक काम तो आप कीजिये
रंगलाल और उसका बेटा नंगलाल दोनों परेशान हैं
रंगलाल : बेटा अब तेरी माँ को क्या कहूँ ?
कमबख्त सब्ज़ी मण्डी में सब्ज़ी भी ऐसे खरीदती है
जैसे सोना खरीद रही हो
नंगलाल : आप तो बड़ी किस्मत वाले हैं पापा ! मुसीबत तो मेरी है ।
आपकी बहू तो सोना भी ऐसे खरीदती है जैसे सब्ज़ी खरीद रही हो ..हा हा हा
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वो ज़माना और था जब मीरा मोहन ...मोहन ...पुकारती रही ....और
लोग उसका विरोध करते रहे.... वो मीरा मोहन ......मोहन........ गाते
हुए स्वयं मोहन हो गई ....लेकिन मोहन के साथ ......उसका सम्बन्ध
केवल आत्मिक रहा , दैहिक नहीं । अब ज़माना और है .....अब तो
मीरा लोकसभा की अध्यक्ष है भाई.......अब तो मनमोहन को भी
कुछ बोलना होगा तो वे उन्हें ......'आदरणीय अध्यक्ष महोदय ' ही
कह कर बुलाएँगे
जियो ..जियो ..आज तो वैकुण्ठ में मोहन और मीरा दोनों हँस रहे
होंगे और रुक्मणीजी दोनों को हँसते देख वैसे ही जल रही होगी
जैसे यहाँ माया जी जल रही हैं .........हा हा हा हा हा हा हा हा
माहौल बहुत गर्म था। गर्म क्या था, उबल रहा था। वक्ताओं द्वारा लगातार
असंसदीय भाषा का प्रयोग करने से सदन में संसद जैसा दृश्य उपस्थित
हो चुका था। सभी को बोलने की पड़ी थी, सुनने को कोई राजी नहीं था।
गाली-गलौज तक पहुंच चुकी बहस किसी भी क्षण हाथा-पाई में भी तब्दील
हो सकती थी। तभी अध्यक्ष महोदय अपनी सीट पर खड़े हो गए और माइक
को अपने मुंह में लगभग ठूंसते हुए बोले, 'देखिए.. मैं अन्तिम चेतावनी
यानी लास्ट वार्निंग दे रहा हूं कि सब शान्त हो जाएं क्योंकि हम लोग यहां
शोकसभा करने के लिए जमा हुए हैं, मेहरबानी करके इसे लोकसभा
न बनाइए। प्लीज..अनुशासन रखिए और यदि नहीं रख सकते तो
भाड़ में जाओ, मैं सभा को यहीं समाप्त कर देता हूं।
अगले ही पल सब
शान्त हो चुके थे। मानो सभी की लपर-लपर चल रही .जुबानों को
एक साथ लकवा मार गया हो। अवसर था अखिल भारतीय जूता महासंघ
के गठन का जिसकी पहली आम बैठक में भाग लेने हज़ारों जूते-जूतियां
एकत्र हुए थे।
एक सुन्दर और आकर्षक नवजूती ने खड़े होकर माइक संभाला,
'आदरणीय अध्यक्ष महोदय, मंच पर विराजमान विदेशी कंपनियों के
सेलिब्रिटी अर्थात् महंगे जूते-जूतियों और सदन में उपस्थित नए-पुराने,
छोटे-बड़े, मेल-फीमेल स्वजनों.. मेरे मन में आज वैधव्य का दुःख तो
बहुत है, लेकिन ये कहते हुए गर्व भी बहुत हो रहा है कि मेरे पति तीन साल
तक लगातार अपने देश-समाज और स्वामी की सेवा करते हुए अन्ततः
शहीद हो गए। उनका साइज भले ही सात था लेकिन मजबूत इतने थे कि
दस नंबरी भी शरमा जाएं।
सज्जनो, जिस दिन उनका निर्माण हुआ, उसके अगले ही दिन एक बहादुर
फौजी के पांवों ने उन्हें अपना लिया। भारतीय सेना का वो शूरवीर सिपाही
लद्दाख और सियाचीन जैसी बर्फ़ीली जगहों पर तैनात रह कर जब तक
अपनी सीमाओं की रक्षा करता रहा तब तक मेरे पति ने जी जान से उनके
पांवों की रक्षा की। गला कर बल्कि सड़ा कर रख देने वाली बर्फ़ीली
चट्टानों और भीतर तक चीर देने वाली तेज़-तीखी शीत समीर से
जूझते हुए वे स्वयं गल गए, गल-गल कर खत्म हो गए परन्तु अपनी
आख़री सांस तक अपने स्वामी के पांवों को ठंडा नहीं होने दिया। मुझे
अभिमान है उनकी क़ुर्बानी पर और मैं कामना करती हूं कि हर जनम
में मुझे पति के रूप में वही मिले चाहे हर बार मुझे भरी जवानी में ही
विधवा क्यूं न होना पड़े, इतना कह कर वह जूती सुबकने लगी।
पूरा सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। किसी ने नारा लगाया,
जब तक सूरज चान्द रहेंगे, जूते जिन्दाबाद रहेंगे।
एक अन्य मंचासीन जूता बोला, 'भाइयो और बहनो, आदिकाल से लेकर
आज तक, मानव और जूतों का गहरा सम्बन्ध रहा है। हमने सदा
मानव की सेवा की है और बदले में मानव ने भी हमारा बहुत ख्याल
रखा है, अपने हाथों से हमें पॉलिश किया है, कपड़ा मार-मार कर
चमकाया है यहां तक कि मन्दिर में भी जाता है तो भगवान से ज्य़ादा
हमारा ध्यान रखता है कि कोई हमें चुरा न ले, उठा न ले। मित्रो, त्रेतायुग
में तो हमारे पूज्य पूर्वज खड़ाउओं ने अयोध्या के सिंहासन पर बैठकर
शासन भी किया है। लेकिन आज हमारी अस्मिता संकट में है।
हम मानवोपकार के लिए सदा अपना जीवन अर्पित करते आए हैं, लेकिन
आज घृणित राजनीति में घसीटे जा रहे हैं और सम्मान के बजाय उपहास
का पात्र बनते जा रहे हैं। कभी कोई असामाजिक तत्व हमारी माला बनाकर
महापुरुषों की प्रतिमा पर चढ़ा देता है तो कभी कोई हमारे तलों में हेरोइन
या ब्राउन शुगर छिपा कर तस्करी कर लेता है। आजकल तो हम हथियार
की तरह इस्तेमाल होने लगे हैं, जब और जिसके मन में आए, कोई भी
हमें किसी नेता पर फेंककर ख़ुद हीरो बन जाता है और हमारे कारण
दो दो वरिष्ठ नेताओं की राजनीतिक हत्या हो जाती है बेचारे सज्जन लोग
टिकट से ही वंचित हो जाते हैं। इतिहास साक्षी है, हम अहिंसावादी हैं।
हम न अस्त्र हैं, न शस्त्र हैं लेकिन ये हमारी प्रतिभा है कि अवसर पड़े तो
हम दोनों तरह से काम आ सकते हैं। हमारी इसी योग्यता का लोगों ने
मिसयूज किया है। हमें......शोषण और अत्याचार के विरूद्ध
आवाज़ उठानी होगी।
हां, हां, उठानी होगी, सबने एक स्वर में कहा
इसी तरह और भी अनेक मुद्दे हैं जिनपर हमें एकजुट होकर काम
करना पड़ेगा और अपने हक के लिए संगठित होकर संघर्ष करना
पड़ेगा। जय जूता, जय जूता महासंघ।
सदन में तालियों के साथ नारे भी गूंज उठे
- जूतों तुम आगे बढ़ो जूतियां तुम्हारे साथ है,
हिंसा से अछूते हैं - हम भारत के जूते हैं....इंकलाब-जिन्दाबाद
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वाह री मेरे देश की दिल्ली सरकार !
रात ही रात में कर दिया चमत्कार ?
एक फूंक भर हवा थी जिसे तूने आंधी बना दिया
एक साधारण से महात्मा को गांधी बना दिया
अब ये आंधी
अर्थात गांधी
तेरी चूलें हिला देगा
मिट्टी में मिला देगा तेरे तमाम इन्तेज़ाम को
चूँकि उम्मीदें बहुत जगी हैं इससे अवाम को
इसलिए अवाम का हाथ अब इसके साथ होगा
और तेरे पंजे में अब केवल तेरा ही हाथ होगा
देखना तमाशा, आगे आगे होता है क्या
ये तो इब्तिदा है गालिबन रोता है क्या
तूने उसकी एक रात भारी की है ?
नहीं !
नहीं !!
नहीं !!!
तूने अपनी मर्ग की तैयारी की है
तूने जो दी है मासूमों को सज़ा
वो पलटेगी बन कर के कज़ा
तमाशबीनों को मज़ा ही मज़ा
ख़ुदा खैर करे डार्लिंग............