वो ज़माना और था जब मीरा मोहन ...मोहन ...पुकारती रही ....और
लोग उसका विरोध करते रहे.... वो मीरा मोहन ......मोहन........ गाते
हुए स्वयं मोहन हो गई ....लेकिन मोहन के साथ ......उसका सम्बन्ध
केवल आत्मिक रहा , दैहिक नहीं । अब ज़माना और है .....अब तो
मीरा लोकसभा की अध्यक्ष है भाई.......अब तो मनमोहन को भी
कुछ बोलना होगा तो वे उन्हें ......'आदरणीय अध्यक्ष महोदय ' ही
कह कर बुलाएँगे
जियो ..जियो ..आज तो वैकुण्ठ में मोहन और मीरा दोनों हँस रहे
होंगे और रुक्मणीजी दोनों को हँसते देख वैसे ही जल रही होगी
जैसे यहाँ माया जी जल रही हैं .........हा हा हा हा हा हा हा हा
3 comments:
और कोई गा रही होगी-
मैं तेरी होगई वे सोणीया, होय सोणिया...:)
यह भी बढ़िया रहा अलबेला जी !
मीरा और मोहन का अद्भुत समन्वय दर्शाया है खत्री जी । बदल दौर में सब परिभाषाएं भी बदलती जा रही हैं।
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