Saturday, October 31, 2009

रोटियाँ माँ जैसी....तो आटा बाप जैसा ...........

हर आदमी को

अपनी
माँ के हाथ की रोटियां पसन्द होती हैं,

मुझे भी है

मैंने कल अपनी पत्नी से कह दिया

- रोटियां मेरी माँ जैसी बना दिया कर

वो बोली - बना दूंगी.......

आटा
अपने बाप जैसा गूँथ दिया कर

__हा हा हा हा हा हा हा

हास्य कवि अलबेला खत्री का विनम्र प्रणाम - लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम

लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम सुन कर ही हमारी धमनियों में
देशभक्ति का प्रवाह होने लगता है






hasyakavi albela khatri performing on sardaar vallabh bhai patel
on amar jawaan in surat part-3

Friday, October 30, 2009

पत्नी मुस्कुराती हुई दिखे तो समझना जेब कटने वाली है



पत्नी

गुस्से में नज़र आये

तो समझना धरती फटने वाली है

और पत्नी

मुस्कुराती हुई दिखे

तो समझना जेब कटने वाली है

_____अर्थात तकलीफ़ दोनों तरफ़ है ....हा हा हा हा हा हा


नोट :
मैं इस तुकबन्दी पर नहीं हँस रहा हूँ ...

मैं तो ये देख के हँस रहा हूँ कि ये दो कौड़ी की तुकबन्दी

मैंने इस ब्लॉग पर पोस्ट कैसे कर दी .........हा हा हा हा हा हा



राखी सावंत के वहम का इलाज ब्लोगर बबली

मनो चिकित्सक - कहिये, क्या बीमारी है आपको ?


राखी सावंत - ऐसी कोई गन्दी बीमारी तो नहीं है ....लेकिन मुझे

लगता है आजकल मैं कुछ ज़्यादा ही घमण्डी हो गई हूँ ...........


मनो चिकित्सक - आपको ऐसा क्यों लगता है ?


राखी सावंत - क्योंकि मैं जब भी दर्पण देखती हूँ तो

मुझे लगता है कि अक्खी दुनिया में मुझसे ज़्यादा सुन्दर

कोई भी नहीं है ....... ऐश , सुष , दीपिका, कैटरीना.......


मनो चिकित्सक -तब तो घबराने की कोई बात नहीं ,

दरअसल आप घमण्डी नहीं ...........

वहमी हो गई हैं ....... हा हा हा हा हा हा


रोज़ सुबह उठते ही हिन्दी ब्लोगर बबली की प्रोफाइल में

उसका फोटो देख लिया करो ...ठीक हो जाओगी .....हा हा हा हा

Wednesday, October 28, 2009

तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे हमारे बच्चों को पीट रहे हैं

एक विधवा के चार बच्चे
एक विधुर के चार बच्चे
दोनों ने आपस में शादी कर ली
फ़िर हो गए चार बच्चे
कुल बारह बच्चे
बहुत अच्छे
एक दिन पत्नी ने पति को फोन किया
ऐ जी सुनते हो ..........
जल्दी से घर पे आओ
घर को गृहयुद्ध से बचाओ
क्योंकि आप वहाँ
ऑफिस में कलम घसीट रहे हैं
और यहाँ
तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे मिलकर
हमारे बच्चों को पीट रहे हैं ___हा हा हा हा

हम सिगरेट के आदी हैं , हर दम सुलगाई रहती है


तर्ज़ : होंटों पे सचाई रहती है

फ़िल्म : जिस देश में गंगा बहती है

होंटों से लगायी रहती है ,ऊँगली में दबाई रहती है

हम सिगरेट के आदी हैं

हम सिगरेट के आदी हैं , हर दम सुलगाई रहती है



सुट्टा जो हमारा होता है

वो देखन वारा होता है

जब छोड़ते हैं हम बाहर तो

धुंए का गुब्बारा होता है ,धुंए का गुब्बारा होता है

दाँतों पे हमेशा पीलापन

आँखों में ललाई रहती है

हम सिगरेट ..................................................................



कुछ लोग जो ज़्यादा ठांसते हैं

वो जब देखो तब खांसते हैं

पग कांपते हैं, हाथ कांपते हैं

साँस लेते हुए भी हाँफते हैं , साँस लेते हुए भी हाँफते हैं

सीने में दमे की बीमारी

हाथों में दवाई रहती है

हम सिगरेट ...................................................................



सस्ती का भी स्वाद लिया हमने

मंहगी को भी अपनाया हमने

तन फूँक तमाशा देखा है

क्या इसके सिवा पाया हमने, क्या इसके सिवा पाया हमने

साँसों में ऐसी दुर्गन्ध कि

दूर दूर लुगाई रहती है

हम सिगरेट ......................................................................


__>>>>>>तम्बाकू विरोधी दिवस <<<<<<<<<__

Tuesday, October 27, 2009

ताऊ रामपुरिया को दिया ताई ने सही जवाब....

ताऊ रामपुरियाजी आज बड़े अच्छे मूड में थे ।
हल्की हल्की बारिश का आनन्द उन्हें और भी
सुकून दे रहा था । सहसा अपनी मूंछों पर बट चढाते हुए
उन्होंने ताईजी से कहा - देख भाग्यवान ...इतना काम
करके ख़ुद को थकाया मत कर ....मेरै कन्नै बहोत पिसे सें...
तू हुकम कर, नौकरां की कतार लगा दयूंगा ...


ताईजी - नहीं जी नहीं, नौकर की कोई ज़रूरत कोन्या
मन्नै तो आप मिल गए, सब मिल गया ............हा हा हा हा हा हा

पति तो हज़ारों मिल जायेंगे, कुत्ता दोबारा नहीं मिलेगा



कुत्ते वाला - ले जाओ बहिनजी, ले जाओ.....

बहुत अच्छा कुत्ता है ..खानदानी और समझदार

कुत्ता है ....ले जाओ सिर्फ़ दो सौ रुपयों में .........


महिला - नहीं भाई, ले तो जाऊं लेकिन,

मेरे पति को कुत्ते पसन्द नहीं हैं


कुत्ते वाला - ले जाओ बहिनजी लेजाओ,

पति तो हज़ारों मिल जायेंगे,

ये कुत्ता आपके हाथ से निकल गया

तो दोबारा नहीं मिलेगा ................हा हा हा हा हा हा हा

Monday, October 26, 2009

हमें आपकी घरवाली में इन्ट्रेस्ट है, इस चांडालनी में नहीं

बात बहुत पुरानी है1992 की ............


मुंबई के पश्चिमी उप नगर विलेपार्ले के भाईदास हॉल में हास्य सम्राट कवि

सुरेन्द्र शर्मा का 'चार लाईनां ' शो चल रहा था


मैं यानी अलबेला खत्री, श्याम ज्वालामुखी, आसकरण अटल और सुभाष

काबरा काव्यपाठ करके महफ़िल जमा चुके थे और हास्य व्यंग्य का माहौल

भरपूर यौवन पर थाक्लाईमैक्स के लिए सुरेन्द्र शर्मा माइक पर आए तो

हॉल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा....और सुरेन्द्र जी ने अपने चुटकुलों

से हँसाया भी बहुत लेकिन जैसे ही उन्होंने "चांडालनी" कविता शुरू की, लोगों

ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया " घरवाली..........घरवाली............"


सुरेन्द्रजी ने अनसुना कर दिया और यथावत 'चांडालनी' सुनाते रहे तो चार

पाँच दर्शक मंच के पास गए और बोले- " सुरेन्द्र जी, घरवाली सुनाओ,

घरवाली ! हमने हसने के लिए पैसे खर्च किए हैं ..इस "चांडालनी" पर रोने


के लिए नहीं ........."



सुरेन्द्रजी ने मज़ाक में कहा- कमाल है यार जिस घर वाली में मुझे ही कोई

इन्ट्रेस्ट नहीं रहा, उसमें आपको क्या इन्ट्रेस्ट है ?



लोगों ने कहा- भाई आपको हो हो,

हमें
तो आपकी घरवाली ( रचना ) में इन्ट्रेस्ट है,

इस चांडालनी (रचना) में नहीं ..........

इतना
सुनना था कि पूरा हॉल ठहाकों से गूँज
उठा

और सुरेन्द्र शर्मा को घरवाली की चार लाईनां सुनानी ही पड़ी.............

लोभी तो देखे बहुत, आज देखलो लोभा...........

प्यारे ब्लोगर बन्धुओं और बहनों !


अब मैं एक संस्मरण माला आरम्भ कर रहा हूँ

जिसमें
कुछ ख़ास हिन्दी
कवियों,

हास्य कवि सम्मेलनों


और टेलिविज़न शो के कुछ ख़ास
किस्सों को

आपके समक्ष बयान करूंगा


इस आलेख माला का कोई भी पात्र,

स्थान व समय काल्पनिक नहीं होगा ,

सभी कुछ वास्तविक होगा और पूर्णतः बेपर्दा होगा



यह सिर्फ़ आपके स्वस्थ मनोरंजन के लिए कर रहा हूँ

फ़िर भी किसी
जीवित या मृत आत्मा को इससे ठेस

पहुँचने वाली हो तो कृपया अपनी
आपत्ति पहले से ही

दर्ज़ करादें ताकि मैं उन के विषय पर चुप ही रहूँ


क्योंकि एक बार पोस्ट प्रकाशित होने पर

उसका
खण्डन छापने में कोई
मज़ा नहीं है .................



लोभी तो देखे बहुत, आज देखलो लोभा


हिन्दी हास्य कवियों कवि सम्मेलनों को तबेलों और

धर्मशालाओं
से उठा कर
पाँच सितारा होटलों तक पहुंचाने वाले

मंच संचालन के पहले और वास्तविक
हास्य सम्राट

स्वर्गीय रामरिख "मनहर" अपने अलमस्त स्वभाव,

अनूठे मंच संचालन और ज़बरदस्त ठहाकों के लिए तो

मशहूर
थे ही प्रतिउत्पन्न्मति में
भी उनका

कोई सानी नहीं था................


एक बार आयकर विभाग मुंबई मुख्यालय में

कवि
-सम्मेलन चल रहा था
एक कन्या बार बार

उनके पास जाती और कहती- मुझे भी एक कविता

सुनानी हैमनहर जी चूंकि नई प्रतिभाओं को सदा बढ़ावा

देते थे इसलिए
उन्होंने उसे माइक पर बुला तो लिया

लेकिन नाम नहीं जानते थे तो वहीं
मंच पर अपने

संचालकीय माइक से ही पूछा -'नाम क्या है आपका ?'


वो बोली-'शोभा'


अब चूंकि मनहर जी उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते थे

और
माइक पर भी
बुला चुके थे

तो उसके लिए बोले तो बोले क्या ? यह एक संकट हो गया

लेकिन मनहर तो मनहर थे



बिना एक क्षण गँवाए बोले-


लोभी तो देखे बहुत, आज देखलो लोभा

कविता सुनाने रही है कुमारी
शोभा

Sunday, October 25, 2009

नेताओं की डीप थिंकिंग का जवाब नहीं................

कुछ भी कहो....

अपने देश के नेताओं की सोच बहुत गहरी है ।

एक दिन मैंने देखा

एक छुटभैये नेता 40 फीट गहरा गड्ढा खुदवा के उसमे बैठे थे।

मैंने पूछा - क्या कर रहे हो ?

वे बोले - डीप थिंकिंग .........हा हा हा हा हा हा

आज उसी की जेब से पौव्वा निकला

छोटी सी बात का बड़ा हौव्वा निकला

हंस जिसे समझे थे वो कौव्वा निकला

रोज़ हमको देता था नसीहत पीने की

आज उसी की जेब से पौव्वा निकला

________________हा हा हा हा हा हा
____________________________________________

यह मुक्तक

एक
ट्रक के पीछे लिखे वाक्य से

प्रेरित
होकर लिखा

इसलिए
अपना मौलिक नहीं,

थोड़ा
थोड़ा चोरी का माल भी शामिल है

...
हा हा हा हा

Wednesday, October 21, 2009

राधा-कृष्ण सी जोड़ी या रोज़ की माथा फोड़ी...

पति हो काला


और


पत्नी हो गोरी


__तो लगे राधा-कृष्ण सी जोड़ी



लेकिन


पति हो गोरा


और पत्नी हो काली


__तो रोज़ की माथा फोड़ी ....हा हा हा

Saturday, October 17, 2009

काश..ये नेता सुधर जाएं तो भारत के भी दिन फिर जाएं.

लूटो खाओ मौज करो आज़ादी है

कभी किसी से नहीं डरो आज़ादी है

मौत बहुत सस्ती कर दी नेताओं ने

जी चाहे तो रोज़ मरो आज़ादी है

कल रात दो बजे मैंने एक लोकल नेता का चरित्र देखा और देख कर ख़ूब

एन्जॉय किया। अब आप भी करो। हुआ यूं कि नशे में धुत्त वह नेता लड़खड़ाता

हुआ सड़क पर चल रहा था। फुटपाथ पर एक बुज़ुर्ग कुत्ता सोया हुआ था,

नेता को पता नहीं क्या सूझी, सोये हुए कुत्ते पर ज़ोर से एक लात चला दी,

बेचारा नींद का मारा कुत्ता रोता हुआ वहां से भागा ये देख कर मुझे गुस्सा

तो बहुत आया लेकिन मैंने नेता से कुछ नहीं कहा, पीड़ित कुत्ते के पास गया

और प्यार से पूछा कि उस नेता ने अकारण ही तुझे लात मार दी, क्या तुझे

गुस्सा नहीं आया, क्या तेरा ख़ून नहीं खौला, क्या तेरे मन में उसे काटने के

भाव नहीं जगे? वो बोला - जगे भाई साहब जगे, बहुत जगे, पर क्या करूं,

वो नेता है, नेताओं के मुंह कौन लगे?


गाड़ी फिएट हो या फोर्ड,

चलाने के लिए ज़रूरत तेल की होगी

और चान्द पर बस्ती पहले रूस बसाये या अमेरिका

पर पहली मॉटेल वहां किसी पटेल की होगी।


ये दो पंक्तियां मैंने पहली बार 1996 के अगस्त महीने की 27 तारीख को

अमेरिका के नॉक्सविल (टेनिसी) में जब सुनाईं तो तालियों की .जबर्दस्त

गड़गड़ाहट से वह समूचा मंदिर गूंज उठा जहां हमारा रंगारंग कार्यक्रम चल

रहा था। इन पंक्तियों की भयंकर 'वन्स मोर' हुई, तो मैंने फिर सुनाईं। फिर

भी वन्स मोर हुई और तब तक होती रही जब तक कि लोग सुन-सुन के और

मैं सुना-सुना के धाप नहीं गया। आगे की रॉ में बैठे एक काकाजी उठ के मंच

पर आए और जेब में से 100 डॉलर का एक नोट निकाल कर मुझे भेंट किया।

मैं बड़ा प्रसन्न हुआ... मैं क्या कोई भी प्रसन्न होता, तुम्हें मिलता तो तुम भी

प्रसन्न होते..लेकिन मैं रातभर सोचता रहा कि आखिर ऐसी क्या बात थी

इन पंक्तियों में कि लोगों ने इतना भारी प्रतिसाद दिया। जबकि दर्शकों में

पटेल लोग बहुत कम थे.. ज्य़ादातर बंगाली, मराठी दक्षिण भारतीय थे..

कुछ एक पाकिस्तानी भी थे। और मज़े की बात ये थी कि ज्य़ादातर लोग

हिन्दी को पूरी तरह समझते भी नहीं थे। मैंने बहुत चिन्तन किया लेकिन

समझ नहीं पाया।


अगले दिन नैशविल (टेनिसी) के डी.वी. पटेल ने बताया कि जो 40-50

लोग हिन्दी समझने वाले गुजराती मूल के लोग थे उन्होंने तो इसलिए

वन्स मोर किया क्यूंकि पूरे नॉर्थ अमेरिका में मॉटेल का सारा कारोबार

पटेलों के हाथ में है और वे इस क्षेत्र में वाक़ई छाये हुए हैं जबकि अहिन्दी

भाषियों ने सिर्फ इसलिए पसंद किया कि उसमें पटेल का नाम था और

वहां के लोग पटेल से सीधा अर्थ सरदार वल्लभ भाई पटेल लगाते हैं। अब

चूंकि भारतीय ही नहीं, ग़ैर भारतीय भी सरदार पटेल की स्मृति को

अत्यधिक सम्मान देते हैं इसलिए लोगों ने इन पंक्तियों को इतना सराहा।

उनकी समझ में और कुछ आया या नहीं, लेकिन पटेल ज़रूर समझ में

गया था। ये सुनके मेरे रोंगटे खड़े हो गए.... इतना सम्मान? भारत के

नेताओं का इतना सम्मान? काश... कि ऐसे नेता आज भी होते... लेकिन

आज तो नेता ऐसे मिल रहे हैं कि


सर में भेजा नहीं है फिर भी सोच रहे हैं

खुजली ख़ुद को है, पब्लिक को नोच रहे हैं

अब क्या बतलाऊं हाल मैं इन नेताओं का

मैल जमी है चेहरे पर और दर्पण पोंछ रहे हैं


पुराने नेताओं और आज के नेताओं में ज़मीन-आस्मां का फ़र्क है। पहले

नेता से ऐसे बात होती थीः नेताजी कहां से रहे हो - दिल्ली से रहा

हूं, कहां जा रहे हो- अपने चुनाव क्षेत्र में जा रहा हूं, यहां कैसे-कलेक्टर से

थोड़ा काम था गांव का, वही करवा रहा हूं। जबकि आज के नेता से ऐसी

बात होती है : नेताजी कहां से रहे हो-कांग्रेस से रहा हूं, कहां जा रहे

हो-भाजपा में जा रहा हूं, यहां कैसे - बसपा वालों का भी कॉल आने वाला

है, उसी के लिए खड़ा हूं।


इन ख़ुदगर्ज़ और अवसरवादी नेताओं की एक लम्बी जमात है इसीलिए इतने

खराब हालात हैं। काश.. ये नेता सुधर जाएं तो भारत के भी दिन फिर जाएं..

पर अपनी तो तक़दीर ही खराब है। अपन मांगते कुछ हैं और मिलता कुछ

है। राम को मांगा तो राम नहीं मिले सुखराम मिल गया, राणा प्रताप मांगा

तो विश्र्वनाथ प्रताप मिल गया, झांसी की रानी मांगी तो रानी मुखर्जी मिली

सरदार पटेल को चाहा तो सरदार मनमोहनजी मिल गए। पता नहीं कब कोई

ढंग की सरकार आएगी...और देश को अच्छे से चलाएगी। लेकिन अनुभव

बताता है कि अब ईमानदार नेता मिलने बड़े मुश्किल हैं। जैसे धतूरे में इत्र

नहीं होता वैसे ही आजकल नेता में चरित्र नहीं होता। कवि हुक्का बिजनौरी

ने जो बात पुलिस के लिए कही, वही मैं नेता के लिए कहता हूं-


नेता और ईमान?

क्या बात करते हो श्रीमान?

सरदारों के मोहल्ले में नाई की दुकान?

ढूं....ढ़ते रह जाओगे

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