आज, आज से मेरा मतलब है 09 अक्टूबर की शाम गुजरात की
सांस्कृतिक राजधानी बड़ौदा में मुझे मेरी लाफ़्टर चैम्पियन वाली
प्रस्तुति देनी थी, अब जहाँ देनी थी वो जगह थी लक्ष्मी निवास पैलेस
यानी महाराजाधिराज गायकवाड़ का राजमहल परिसर, यानी एक
ऐसी जगह जिसे देख कर भारत के गौरव और ऐश्वर्य पर गर्व से
छाती फूल जाती है और पूरा देखने लगो तो सांस फूल जाती है ।
खैर ...अवसर था एक इन्टर-नेशनल सेमिनार का जिसमे विश्वभर
के जाने-माने डॉक्टर, प्रोफ़ेसर और स्कॉलर शामिल हुए थे। भारत
से भी बहुत लोग आये, लेकिन ज़्यादा लोग विदेशी ही थे । सबकुछ
था वहां, भोजन-भाजन तो हाई-फ़ाई था ही, एक से बढ़कर एक
आइटम डान्सर, एक से बढ़कर एक डान्स ग्रुप और एक से बढ़कर
एक गायक - गायिका जिनके साथ मुझे भी बुला लिया गया था।
प्रोग्राम में किसी का ध्यान था नहीं, सभी लोग या तो आपस में
बतिया रहे थे...या राजमहल के वीडियो बना रहे थे या खाने-पीने
में जुटे थे...मैं किसी का नाम तो नहीं लूँगा लेकिन जब बड़े-बड़े
फ़िल्म स्टार, हॉट-म-हॉट आइटम डान्स और सारे सिंगर एक
एक करके शहीद हो गये, तो मुझे बुलाया गया । अब ऐसे माहौल
में मैंने भी कौन सा तीर मार लेना था, लिहाज़ा जैसे ही मैं शुरू
हुआ कुछेक भारतीयों ने ख़ूब ताली-वाली बजाई । मुझे जोश आ
गया तो मैंने गुजरात और भारत की संस्कृति की बहुमंजिली
कवितायेँ शुरू कर दीं । अब लोग थोड़े ठण्डे पड़ गये तो आयोजक
बोले ,"ये लोग समझ नहीं पा रहे हैं , इंग्लिश में बोलो"
मैंने कहा-नहीं बोलूँगा, मैं जब विदेश जाता हूँ तो मुझे इनकी भाषा
समझ नहीं आती..ये लोग मेरे लिए हिन्दी बोलते हैं क्या ?
आयोजक बहुत बोले, लेकिन मैं अड़ गया, मैंने कहा - मैं आज़ाद
देश का नागरिक हूँ और गुलामी की भाषा बोलने के लिए बाध्य नहीं
हूँ.........इन विदेशियों को पता तो चलना चाहिए कि हमारी भी
अपनी भाषा है जिसमे हम अपनी शान और संस्कृति की बात कर
सकते हैं
कुल मिला कर, परिणाम ये हुआ कि दसेक मिनट की ही हाजरी
लगी अपनी और पैसा मिला पूरा तो मुझे लगा ..वाह ! आज तो
फ़ोकट में ही पैसा मिल गया ..जय हिन्दी-जय हिन्द !
और हाँ शुभ नवरात्रि भी
वैसे एक बात बताऊँ अन्दर की......किसी से कहना मत....मेरा
अंग्रेजी से कोई विरोध नहीं है लेकिन मैं बोलता कैसे ? मुझे आती
ही नहीं......अनपढ़ जो ठहरा.......हा हा हा हा हा हा
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7 comments:
जय हिंदी :)
अगर वहां सभी भारतिया थे तो आप् सही थे, अगर दो चार गोरे भी हो तो भी कोई बात नही, लेकिन अगर वहां सारे ही गोरे थे तो...... तो ऎसे प्रोगराम वहां होंगे ही नही, अग्रेजी आना ना आना कोई बडी बात नही, लेकिन अपनी हिन्दी को ना भुलना बहुत बडी बात हे,मै हमेशा हिन्दी के लिये ही सब को (सिर्फ़ भारतियो को)मजबुर करता हुं कि मेरे साथ हिन्दी ही बोलो,चाहे मुझे कितना भी नुकसान हो जाये.... वर्ना राम राम,
....आपने बिलकुल सही कदम उठाया!....अपने ही घर में बैठ कर हमें पडोसी की भाषा बोलने की क्या जरुरत?....जय हिन्दी, जय हिन्द!
यह फोकट का पैसा नहीं है भाई । आपने जिस ताकत और गर्व के साथ हिन्दी को स्थापित किया उस शक्ति प्रदर्शन का मानदेय है ।
हा...हा...हा...बहुत खूब .....!!
हा...हा...हा...बहुत खूब .....जय हिन्दी, जय हिन्द!!
हा...हा...हा...बहुत खूब........................................... जय हिन्दी, जय हिन्द!
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