Monday, May 17, 2010

हँस रहे हैं कसाब, रो रहे उज्ज्वल, आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल






न तो जीना सरल है न मरना सरल

आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल


कल नयी दिल्ली स्टेशन पे दो जन मरे

रेलवे ने बताया कि ज़बरन मरे

अब मरे दो या चाहे दो दर्जन मरे

ममतामाई की आँखों में आये न जल

आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल



तप रहा है गगन, तप रही है धरा

हर कोई कह रहा मैं मरा, मैं मरा

प्यास पंछी की कोई बुझादे ज़रा

चोंच से ज़्यादा सूखे हैं बस्ती के नल

आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल



एक अफज़ल गुरू ही नहीं है जनाब

जेलों पर है हज़ारों दरिन्दों का दाब

ख़ूब खाते हैं बिरयानी, पी पी शराब

हँस
रहे हैं कसाब, रो रहे उज्ज्वल

आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल



कुर्सी के कागलों ने जहाँ चोंच डाली

देह जनता की पूरी वहां नोंच डाली

सत्य अहिंसा की शब्दावली पोंछ डाली

मखमलों पे मले जा रहे अपना मल

आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल










www.albelakhatri.com


12 comments:

arvind said...

कल नयी दिल्ली स्टेशन पे दो जन मरे

रेलवे ने बताया कि ज़बरन मरे

अब मरे दो या चाहे दो दर्जन मरे

ममतामाई की आँखों में आये न जल

आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल
........waah, bahut khub, seedha chot.aise parivesh me kyaa gajal likhen.

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut khoob likha
khatriji

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

M VERMA said...

ममतामाई की आँखों में आये न जल

आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल
अलबेला जी
यह रचना जितना दर्द समेटे हुए है जिसका बयाँ नही किया जा सकता.
ममता (नाम की) तक पहुँचे ये दर्द !!

Unknown said...

कड़वी सच्चाई पर हमला करती प्रसतुति

Rajeysha said...

अल्‍बेला जी इस अल्‍बेली कवि‍ता में हम आपके साथ हैं- बल, थल, चल, पल, शगल जैसे तुक शेष रहते हैं। कुछ और मनोरंजक पर नोचने वाली बंदि‍शों की संभावना बाकी रहती है।

डॉ टी एस दराल said...

आज बहुत गहरी बातें लिखी हैं अलबेला जी । सही है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जय हो महाप्रभू!
--
बढ़िया पैरोडी है!
--
अच्छा होता कि पैरोडी के साथ इस नाचीज का भी नाम या लिंक दे देते!
--

दिलीप said...

waah Albela sirji...is baar to uttejit kar diyaa aapne...seedhi dil pe lagi...

शिवम् मिश्रा said...

सत्यमेव जयते ...........सदा सदा जयते !!

राज भाटिय़ा said...

जब सरकार ६२ सालो मै कुछ नही कर सकी तो, बहाने तो बनायेगी ना,रेल गाडी का मेरे साथ भी यही हादसा हुआ था, आनी कहा है ओर आ कहा रही है... फ़िर लोगो मै हफ़रा तफ़री तो मचेगी ही ना

ओम पुरोहित'कागद' said...

देख देश का हाल
नयन हमारे हैँ सजल।
सरकारी स्कूल मेँ पढ़े
अब कैसे लिखेँ ग़ज़ल॥
त्याग तप की मूरत
कभी नेता जी थे एक।
अब तो यहां उग रही
नेताओँ की फसल॥

नेता अभिनेता चौर
एक सरीसे लगते
ना जाने कोन असल
है इन मेँ कौन नकल॥
*
बढ़िया और अलबेले व्यंग्यबाण चलाए हैँ भाई अलबेला जी। बधाई हो!

संजय भास्‍कर said...

आज बहुत गहरी बातें लिखी हैं अलबेला जी ।

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