आसाराम बापू अपने पर आये संकट का निवारण करने के लिए यदि निर्मल दरबार में जाते तो वहां शायद ऐसा कुछ होता :
निर्मल बाबा : भई कहाँ से आये हैं आप ?
आसाराम : जी अभी तो जोधपुर से ही आया हूँ ..वैसे ठिकाने मेरे पूरी दुनिया में फैले हैं ..
निर्मल बाबा : करते क्या हैं आप ?
आसाराम : जी, लोगों के सांसारिक दुःख दूर करके उन्हें परमात्मा से मिलाता हूँ , लेकिन ख़ुद के नहीं मिटा पाया इसलिए आपके पास आया हूँ
निर्मल बाबा : अर्थात जिस प्रकार एक हज्जाम अपने बाल दूसरे हज्जाम से कटवाता है उसी प्रकार आज एक बाबा दूसरे बाबा के पास अपने संकट कटाने आया है .....
आसाराम : जी बाबा ..आप तो सब जानीजान हैं ....
निर्मल बाबा : भई ये जेल बड़ी आ रही है सामने ..........क्या आपने कभी कोई जेल देखी है ?
आसाराम : जी हाँ, आजकल तो सपने में रोज़ जेल ही दिखाई देती है ...
निर्मल बाबा : तो एक बार सपने से निकल कर, पूरी जागृत अवस्था में कुछ दिन जेल में रह कर आ जाओ, किरपा वहीँ अटकी हुई है ....
आसाराम : जी बाबा जी ........बोल निर्मल दरबार की जय
परमपाखण्डी बाबा अलबेलानंदजी परमकंस के फ़ेसबुकिया प्रवचनों से साभार
https://www.facebook.com/AlbelaKhatrisHasyaKaviSammelan?ref=hl
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-09-2013) गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का -चर्चा मंच 1359 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ! बहुत अच्छी रचना ! बधाई स्वीकार करें !
हिंदी
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