Friday, August 23, 2013

मैं तो कोई दुर्वासा नहीं, जो श्राप दे दूंगा परन्तु जानने वाले जानते हैं कि इसका परिणाम कितना भयंकर होता है



 प्यारे दोस्तों !
बात कुछ कड़वी है, परन्तु  लिखना ज़रूरी है इसलिए  लिख रहा हूँ .  कवि-सम्मेलनों  में तो  कुछ ऐसे लोग सक्रिय हैं ही  जो कि  अन्य  कवियों की हास्य रचनाएं उनकी अनुपस्थिति में सुना देते हैं  क्योंकि  वहां माला  और माल  दोनों मिलते हैं  परन्तु  ब्लॉगजगत और फेसबुक  में तो न  कोई पेमेन्ट मिलता है नहीं  तालियाँ ...........तो फिर चोरी  क्यों ?

जब यहाँ share की सुविधा है tag की व्यवस्था है  तो चोरी क्यों ?  एक कवि  के लिए उसकी कविता  औलाद की  होती है . और अपनी औलाद का पिता कोई और कहलाये, ये कोई  भी बर्दाश्त नहीं कर सकता .. मंच पर मैंने  इस बुराई को झेला  है और  इसका विरोध भी किया है . परन्तु फेसबुक पर भी अगर लोग  मेरी रचना अपने नाम से लगाने लगे तो  तो उन लोगों को ज़रूर  विरोध दर्ज करना चाहिए जिनको  मालूम हो कि  वह रचना मेरी है .

"उस रात रेल में

गुजरात मेल में

हमने मौका देख कर एक पैग लगाया
...See More

आज सुबह लगाईं गयी मेरी यह रचना अब तक 2 0 6 मित्रों ने like की है, 2 4  मित्रों ने share  की है  और 6 7 कुल comments  इस पर दिख रहे हैं . जबकि  अभी अभी पता चला कि vinod khatter  नाम के  व्यक्ति ने उक्त कविता अपनी wall पर बिना मेरा नाम लगाये  पोस्ट कर दी है ..........मेरे अनेक मित्रों ने  बताया कि  यह कविता वहां  उनके नाम से चस्पा है .

मैं इस  चोरी का विरोध करता हूँ  और विनम्र निवेदन करता हूँ कि  भाई, मैं कोई शौकिया कलमकार नहीं,  बल्कि  केवल और केवल लेखन को समर्पित  आदमी हूँ .  अगर मेरी रचना पसंद  आती है तो शेयर कर लो, लेकिन चोरी न करो  please !

मुझे विश्वास है कि आप जैसे मित्रों का भी समर्थन मुझे मिलेगा और चोरी की कविता लगाने वालों का विरोध किया जायेगा .
प्यारे मित्रो ! मेरा मानना है कि  फेसबुक के ज़रिये भी हम साहित्यिक और राष्ट्रभक्ति का वातावरण बनाने में सहयोगी हो सकते हैं . इसीलिए मैं  मनोरंजन के साथ साथ पाठकों के लिए यहाँ अपनी बेहतरीन कवितायेँ भी रखता हूँ  ताकि लोग स्पर्धा करें और एक से बढ़ कर एक  सार्थक कविता रचने का अभियान चले ..........परन्तु  इस तरह का अवरोध  नहीं आना चाहिए .........अरे भाई मैंने कौन सा आपसे  पैसा माँगा है कविता का ...ले लो और  लगाओ अपनी  wall पर लेकिन कमसे कम चुरा कर तो न लगाओ . मेरे नाम से लगाओ,

याद रहे, सरस्वती की चोरी अक्षम्य है . मैंने अपनी आँखों से देखा है उनका हाल जो ऐसा करते हैं ..........मैं तो कोई  दुर्वासा नहीं, जो  श्राप दे दूंगा  परन्तु  जानने वाले जानते हैं कि  इसका परिणाम कितना भयंकर होता है . लिहाज़ा इस तरह के पाप से बचा जाए और स्वस्थ  सहचर्य के साथ यहाँ इस मंच पर विचारों का  आदान प्रदान हो . ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए .

जय हिन्द !
-अलबेला खत्री 

hasyakavi albela khatri's poem

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज शनिवार (24-08-2013) को मुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़-चर्चा मंच 1347 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" said...


बहुत सही बात कही आपने अलबेला जी .ग़ज़ल भी बहुत खुबसूरत है
latest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जी हाँ, सही लिखा है आपने, मैंने भी एक पैरोडी लिखी थी, नेताओं की डगर पे, चमचों दिखाओ ... भाई लोगों ने खूब पेस्ट किया लेकिन ओरिजिनल पैरोडी का हवाला देना भी उचित न समझा.

Unknown said...

lekin pyare indian citizen ji, yah pairody to ek film me aaj se 10 saal pahle hi aa chuki hai..usme raajkumaar aur jaiki shrof the

देवेन्द्र पाण्डेय said...

कविता की चोरी करने वाला चाहे और कुछ भले हो कवि नहीं रह पाता। कवि के रूप में उसकी मृत्यु निश्चित है। आप श्राप दो या न दो।

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