Wednesday, August 28, 2013

YE BHI KOI AANA HUA KANHA ...........

YE  BHI  KOI  AANA  HUA  KANHA ...........by albela khatri

Monday, August 26, 2013

चलो यहाँ से 'अलबेला' हम भी कारोबार करें


मिल कर आँखे चार करें
आजा रानी, प्यार करें

जग पर तम गहराया है
भेद इसे, उजियार करें

कैसे  कैसे लोग  यहाँ         
छुपछुप  पापाचार करें

नया पैंतरा दिल्ली का
भोजन का अधिकार करें

लीडर तेरा क्या होगा
वोटर जब यलगार करें

चलो यहाँ से  'अलबेला'
हम भी  कारोबार  करें


जय हिन्द !
अलबेला खत्री 

hasyakavi albela khatri with his poem

hasyakavi albela khatri with his poem


Saturday, August 24, 2013

like या comments इसलिए नहीं करना चाहिए कि कोई आपको कर रहा है बल्कि इसलिए करना चाहिए कि वो बात आपको पसंद आई


आज एक फेसबुक मित्र  ने शिकायत की है मुझसे कि वोह मेरी हर फोटो को like करते हैं तो मैं उनकी हर फोटो like क्यों नहीं करता . मैंने  हँस कर कहा, 'आज कर दूंगा'  तो वे बोले - पहले मेरा प्रोफाइल फोटो like करो .  ये बात मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ  कि  बहुत से मित्रों को शायद ऐसी ही शिकायत मुझसे हो सकती है या आपसे भी हो सकती है .

अब मेरा कहना ये है मित्रो ! कि like या comments इसलिए नहीं करना चाहिए कि  कोई आपको कर रहा है बल्कि इसलिए करना चाहिए कि  वो बात आपको पसंद आई . मैं अक्सर  अपनी पोस्ट लगाने के बाद राउण्ड लगाता हूँ  और जो भी पोस्ट मुझे  अच्छी लगती है  मैं उस पर like  और comments  करता हूँ .  वैसे भी  फेसबुक पर हर मित्र लेखक नहीं है  और हर मित्र पाठक नहीं है . तो लेखक से आप like  के बजाय  अच्छे लेखन की अपेक्षा करें और पाठकगण  मित्रों से  अनुरोध है कि वे हर अच्छी पोस्ट को like करें या comments करें . भले ही उसका लेखक आपकी पोस्ट like करे या न करे .

ऐसा होगा तो  इस मंच पर श्रेष्ठ रचनाओं  को प्रोत्साहन मिलेगा और परस्पर स्पर्धा  होगी लेखकों व  पाठकों के बीच कि  लेखक लिखता अच्छा है  या पाठक वाहवाही अच्छी करता है . आओ,  इस मंच का हम पूरा पूरा सदुपयोग करें  और निरन्तर  हाशिये पर जा रहे स्वस्थ लेखन  को नवऊर्जा देने का साझा प्रयास करें .


प्रिय मित्रो, यह बात भी हमें याद रखनी चाहिए कि  हर आदमी मोबाइल से फेसबुक अपडेट नहीं करता . कई ऐसे पाठक हैं जो सिर्फ कुछ देर के लिए  यहाँ आते हैं .  कुछ लोग  साइबर कैफे में जा कर करते हैं और कुछ लोग केवल डेस्कटॉप से ही करते हैं . तो  ज़ाहिर है कि  उन सब के सामने पोस्ट जायेगी और वे पढेंगे  तभी तो like  करेंगे . औरों का क्या मैं खुद का उदाहरण देता हूँ कि  जब मैं  घर में होता हूँ सिर्फ़  तभी  ब्लॉग और फेसबुक अपडेट करता हूँ या mail चैक करता हूँ . एक बार घर से निकल गया तो  फिर जय राम जी की ..........ऐसे में कोई अपेक्षा करे कि  मैंने उसे like  नहीं किया तो  यह  परिस्थितिजन्य  बाधा है . इसका कोई उपाय नहीं .

बुरा न मानें तो हम सब हलवाई  हैं  और शौकिया नहीं  व्यावसायिक हलवाई हैं . हमारा दायित्व है  उपभोक्ता को स्वस्थ  और स्वादिष्ट मिठाई देना ..........वो खाने के बाद like  करे न करे, उसकी मर्ज़ी .....हमारा काम ये नहीं कि  हम सब हलवाई इक दूजे की दूकान पर जा कर  नियमित रूप से उसकी मिठाइयों  को like  करें हा हा हा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री
risahika agrawal,mukesh khordia, albela khatri surat

Friday, August 23, 2013

मैं तो कोई दुर्वासा नहीं, जो श्राप दे दूंगा परन्तु जानने वाले जानते हैं कि इसका परिणाम कितना भयंकर होता है



 प्यारे दोस्तों !
बात कुछ कड़वी है, परन्तु  लिखना ज़रूरी है इसलिए  लिख रहा हूँ .  कवि-सम्मेलनों  में तो  कुछ ऐसे लोग सक्रिय हैं ही  जो कि  अन्य  कवियों की हास्य रचनाएं उनकी अनुपस्थिति में सुना देते हैं  क्योंकि  वहां माला  और माल  दोनों मिलते हैं  परन्तु  ब्लॉगजगत और फेसबुक  में तो न  कोई पेमेन्ट मिलता है नहीं  तालियाँ ...........तो फिर चोरी  क्यों ?

जब यहाँ share की सुविधा है tag की व्यवस्था है  तो चोरी क्यों ?  एक कवि  के लिए उसकी कविता  औलाद की  होती है . और अपनी औलाद का पिता कोई और कहलाये, ये कोई  भी बर्दाश्त नहीं कर सकता .. मंच पर मैंने  इस बुराई को झेला  है और  इसका विरोध भी किया है . परन्तु फेसबुक पर भी अगर लोग  मेरी रचना अपने नाम से लगाने लगे तो  तो उन लोगों को ज़रूर  विरोध दर्ज करना चाहिए जिनको  मालूम हो कि  वह रचना मेरी है .

"उस रात रेल में

गुजरात मेल में

हमने मौका देख कर एक पैग लगाया
...See More

आज सुबह लगाईं गयी मेरी यह रचना अब तक 2 0 6 मित्रों ने like की है, 2 4  मित्रों ने share  की है  और 6 7 कुल comments  इस पर दिख रहे हैं . जबकि  अभी अभी पता चला कि vinod khatter  नाम के  व्यक्ति ने उक्त कविता अपनी wall पर बिना मेरा नाम लगाये  पोस्ट कर दी है ..........मेरे अनेक मित्रों ने  बताया कि  यह कविता वहां  उनके नाम से चस्पा है .

मैं इस  चोरी का विरोध करता हूँ  और विनम्र निवेदन करता हूँ कि  भाई, मैं कोई शौकिया कलमकार नहीं,  बल्कि  केवल और केवल लेखन को समर्पित  आदमी हूँ .  अगर मेरी रचना पसंद  आती है तो शेयर कर लो, लेकिन चोरी न करो  please !

मुझे विश्वास है कि आप जैसे मित्रों का भी समर्थन मुझे मिलेगा और चोरी की कविता लगाने वालों का विरोध किया जायेगा .
प्यारे मित्रो ! मेरा मानना है कि  फेसबुक के ज़रिये भी हम साहित्यिक और राष्ट्रभक्ति का वातावरण बनाने में सहयोगी हो सकते हैं . इसीलिए मैं  मनोरंजन के साथ साथ पाठकों के लिए यहाँ अपनी बेहतरीन कवितायेँ भी रखता हूँ  ताकि लोग स्पर्धा करें और एक से बढ़ कर एक  सार्थक कविता रचने का अभियान चले ..........परन्तु  इस तरह का अवरोध  नहीं आना चाहिए .........अरे भाई मैंने कौन सा आपसे  पैसा माँगा है कविता का ...ले लो और  लगाओ अपनी  wall पर लेकिन कमसे कम चुरा कर तो न लगाओ . मेरे नाम से लगाओ,

याद रहे, सरस्वती की चोरी अक्षम्य है . मैंने अपनी आँखों से देखा है उनका हाल जो ऐसा करते हैं ..........मैं तो कोई  दुर्वासा नहीं, जो  श्राप दे दूंगा  परन्तु  जानने वाले जानते हैं कि  इसका परिणाम कितना भयंकर होता है . लिहाज़ा इस तरह के पाप से बचा जाए और स्वस्थ  सहचर्य के साथ यहाँ इस मंच पर विचारों का  आदान प्रदान हो . ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए .

जय हिन्द !
-अलबेला खत्री 

hasyakavi albela khatri's poem

Saturday, August 17, 2013

रक्षाबन्धन 2013 पर हिंदी हास्यकवि अलबेला खत्री के अनुपम दोहे

राखी का त्यौहार और अलबेला खत्री के दोहे

राखी का त्यौहार और अलबेला खत्री के दोहे

राखी का त्यौहार और अलबेला खत्री के दोहे

राखी का त्यौहार और अलबेला खत्री के दोहे

Tuesday, August 13, 2013

आज़ादी के शहद की बूंद बूंद लो चाट

एक कुण्डलिया छन्द पन्द्रह अगस्त के नाम


आज़ादी के शहद की बूंद बूंद लो चाट

सारे मिलकर हिन्द की ख़ूब लगाओ वाट


ख़ूब लगाओ वाट,  कांग्रेस पार्टी वालो


पी लो पूरा ख़ून, सियासत के चण्डालो


पहने गाँधी छाप, कड़कड़ी उजली खादी


करते जाओ पाप, तुम्हें पूरी आज़ादी


-अलबेला खत्री

एक कुण्डलिया छन्द पन्द्रह अगस्त के नाम by hasyakavi albela khatri

Saturday, August 10, 2013

सी आई डी के श्वान जहाँ सूंघते हुए थाने में आ जाते हैं



चन्द सरफिरे लोग
भारत में
भ्रष्टाचार मिटाने की साज़िश कर रहे हैं

यानी
कीड़े और मकौड़े
मिल कर
हिमालय हिलाने की कोशिश कर रहे हैं

मन तो माथा पीटने को हो रहा है काका
लेकिन मैं फिर भी लगा रहा हूँ ठहाका

क्योंकि इस आगाज़ का अन्जाम जानता हूँ
मैं इन पिद्दी प्रयासों का परिणाम जानता हूँ

सट्टेबाज़ घाघ लुटेरे
दलाल स्ट्रीट में बैठ कर
तिजारत कर रहे हैं
और
जिन्हें चम्बल में होना चाहिए था
वे दबंग सदन में बैठ कर
वज़ारत कर रहे हैं

देश के ही वकील जब देशद्रोहियों के काम आ रहे हों
और
गद्दारी में जहाँ सेनाधिकारियों तक के नाम आ रहे हों

पन्सारी और हलवाई जहाँ मिलावट से मार रहे हों
डॉक्टर,फार्मा और केमिस्ट
रूपयों के लालच में इलाज के बहाने संहार रहे हों

ठेकेदारों द्वारा बनाये पुल
जब उदघाटन के पहले ही शर्म से आत्मघात कर रहे हों
जिस देश में
पण्डित और कठमुल्ले
अपने सियासी फ़ायदों के लिए जात-पात कर रहे हों
और
दंगे की आड़ में
बंग्लादेशी घुसपैठिये निरपराधों का रक्तपात कर रहे हो

वहां
जहाँ
मुद्राबाण खाए बिना
दशहरे का कागज़ी दशानन भी नहीं मरता
और पैसा लिए बिना
बेटा अपने बाप तक का काम नहीं करता

सी आई डी के श्वान जहाँ सूंघते हुए थाने में आ जाते हैं
कथावाचक-सन्त लोग जहाँ हवाला में दलाली खाते हैं

भ्रष्टाचार जहाँ शिष्टाचार बन कर शिक्षा में जम गया है
और रिश्वत का रस धमनियों के शोणित में रम गया है

वहां वे
उम्मीद करते हैं कि
घूस की जड़ें उखाड़ देंगे
अर्थात
निहत्थे ही
तोपचियों को पछाड़ देंगे

तो मैं सहयोग क्या,
शुभकामना तक नहीं दूंगा
न तो उन्हें अन्धेरे में रखूँगा
न ही मैं ख़ुद धोखे में रहूँगा

बस
इत्ता कहूँगा

जाने भी दो यार...........छोड़ो
कोई और बात करो

क्योंकि
राम फिर शारंग उठाले
कान्हा सुदर्शन चलाले
आशुतोष तांडव मचाले
भीम ख़ुद को आज़माले

तब भी भ्रष्टाचार का दानव मिटाये न मिटेगा
वज्र भी यदि इन्द्र मारे, चाम इसका न कटेगा

तब हमारी ज़ात ही क्या है ?
तुम भ्रष्टाचार मिटाओगे
भारत से ?
तुम्हारी औकात ही क्या है ?

अभी, मुन्नी को और बदनाम होने दो
जवानी शीला की गर्म सरेआम होने दो
मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से
आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो

जय हिन्द !
-अलबेला खत्री


Thursday, August 8, 2013

सभी प्यारे दोस्तों को रमज़ानी ईद मुबारक़

ईद मुबारक़

ईद मुबारक़

ईद मुबारक़

जिससे अपना सूटकेस तक नहीं उठता, उसने भी लट्ठ उठा रखा है और ढूंढ रहा है समलैंगिंगों को


बहुत दिनों से देख, पढ़ और सुन रहा हूँ ।

सब के सब सम्भ्रांत किस्म के भले लोग हाथ धोकर,

बल्कि नहा धो कर

समलैंगिंगों  के पीछे पड़े हैं ।

जिससे अपना सूटकेस तक नहीं उठता, उसने भी लट्ठ उठा रखा है

और ढूंढ रहा है समलैंगिंगों को .............




क्यों भाई ?

क्या बिगाड़ा है उन्होंने आपका ?

क्या वो आपके साथ कुछ हरकत कर रहे हैं ?

क्या वो आपको कोई तकलीफ़  पहुँचा रहे हैं ?

नहीं न ?

तो जीने दो न उन को अपने हिसाब से ...

तुम क्यों ज़बरदस्ती उनकी खीर में अपना चम्मच हिला रहे हो ?




अरे आपको तो उनका सम्मान करना चाहिए...

नागरिक अभिनन्दन करना चाहिए ...

और आप उनका अपमान कर रहे हैं ।



असल में आप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि

आपकी समझदानियाँ छोटी हैं

जिनमें  अभी तक ये बात आई ही नहीं कि

समलैंगिंगता  समाज के लिए अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है



सम यानी some का मतलब होता है कम,

अब कोई लैंगिंग सम्बन्ध

कम बनाए तो आपको क्या तकलीफ़  है ?


कौआ अगर कूड़े में मुंह मारता है ,गिद्ध अगर मुर्दों का मांस नोंचते हैं

या कोई सूअर गन्दगी में ऐश करता है तो क्या हमें तकलीफ़  होती है ?

बिल्कुल नहीं होती, जो जैसे भाग्य लेकर आया है वैसा जीवन जीता है ।

तो फ़िर ये गे लोग जो नर्क अपने भाग्य में लिखा कर लाये हैं उससे हमें

तकलीफ़  क्यों ?

___________समलैंगिंगता के फायदे :


जब कुत्सित और कामी पुरूष आपस में ही संतुष्टि प्राप्त कर लेंगे

तो महिलाओं और कन्याओं पर होने वाले अनाचार में कमी आएगी ।

वे निश्चिंत हो कर घर से बाहर जा सकेंगी ...


२ सजातीय सम्बन्धों के कारण अनैच्छिक गर्भाधान और भ्रूण हत्या

जैसे पाप भी कम होंगे । बल्कि ख़त्म ही हो जायेंगे ।


३ सबसे बड़ा खतरा आज हमें तेज़ी से बढती जनसँख्या का है ।

समलैंगिंगता से यह खतरा भी कम होगा, आबादी पर विराम लगेगा ।


और भी बहुत से फ़ायदे हैं जो मैं गिना सकता हूँ लेकिन डर ये है कि

इनका इतना पक्ष लेते लेते

कहीं मैं ख़ुद ही समलैंगिंग न हो जाऊं .....हा हा हा हा हा हा हा


इसलिए ....शेष अगले अंक में ..........



समलैंगिंगों आगे बढो ..हम तुम्हारे साथ हैं .........हा हा हा हा हा हा

जय हिन्द
-अलबेला खत्री 

Sunday, August 4, 2013

हमारे लोकतंत्र में रंगलाल कौन है, नंगलाल कौन है और कुत्ते कौन हैं ?



रंगलाल चुनाव में खड़े हो गए और जब जीत कर गाँव के सरपंच

बन गए.....तो अपने बेटे नंगलाल से कहा- देखो बेटा ! अब मैं

सरपंच बन गया हूँ तो गाँव में कोई भी दुखी नहीं रहना चाहिए

क्या अपना, क्या पराया, क्या आदमी , क्या पशु-पक्षी...सभी ख़ुश

और नीडर होकर रहें, ये हमारी ज़िम्मेदारी है


नंगलाल - आप चिन्ता मत करो पापा ! मैं सबका ध्यान रखूँगा


सर्दियों का मौसम थाकड़ाके की ठण्ड पड़ रही थीरंगलाल को

दूर कहीं कुत्तों के कूकने की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने नंगलाल

से कहा- जाओ बेटा ! पता करके आओ.....कुत्ते क्यों रो रहे हैं ....?



नंगलाल बाहर गया और थोड़ी देर बाद आकर बताया कि कुत्ते

बेचारे फ़रियाद कर रहे हैं और ठण्ड से बचने के लिए कोई छत

का सहारा मांग रहे हैंरंगलाल ने तुरन्त एक लाख रूपये देकर

कहा कि कल की कल उनके लिए रैन बसेरा बन जाना चाहिए ...

अगले दिन फ़िर कुत्ते रोने लगे, फिर नंगला को भेजा गया तो

उसने बताया कि छत तो उनको पसंद आई लेकिन सर्दी ज़्यादा है

कुछ ओढ़ने को भी चाहिए .......रंगलाल ने पचास हज़ार दिए और

बोले- सभी के लिए कल की कल कम्बल और रजाइयों का प्रबंध

हो जाना चाहिए



जब तीसरे दिन भी कुत्तों का रोना बंद नहीं हुआ तो रंगलाल ने

पूछा - अब क्या है ? नंगलाल बोला- पापा ! बहुत बेशर्म कुत्ते हैं .......

कहते हैं जब इतनी मेहरबानी की है तो थोड़ी और करदो ..हमारे

भोजन का भी प्रबन्ध कर दो........रंगलाल को दया गई.........

- सही कहते हैं बेटा वो ! क्योंकि सरपंच होने के नाते अपनी

रियाया की हर चीज का ख्याल हमें ही रखना है .....ये लो दो लाख

और कल से गाँव के सभी कुत्तों का दोनों समय का खाना..

हमारी ओर से..नंगलाल ने रूपये लिए और हाँ कर के चला गया



पांचवें दिन रंगलाल निश्चिन्त थे कि आज सभी कुत्ते आराम से

सोयेंगे और हम भी....लेकिन जैसे ही सोने के लिए बिस्तर पर

गए कुत्तों ने फिर कूकना आरम्भ कर दियाअब रंगलाल को

गुस्सा गया...उन्होंने उठाई बन्दूक और बोले- हरामखोरों ने

समझ क्या रखा है ? एक को भी नहीं छोडूंगा..। सब कुछ तो

दे दिया , अब और क्या चाहिए ?



नंगलाल ने कहा - पापा गुस्सा मत करो, आज वे कुछ मांग नहीं

रहे हैं,......... बल्कि आज तो वे आपका धन्यवाद अदा कर रहे हैं

और भगवान् से दुआ कर रहे हैं कि आप सदा ख़ुश रहें..........


इस तरह कुत्ते भोंकते  ही रहे, रंगलाल देता ही गया और

नंगलाल लेता ही गया


प्यारे पाठक  मित्रो


हमारे लोकतंत्र में रंगलाल कौन है,

नंगलाल कौन है और कुत्ते कौन हैं ?



आपके जवाब की प्रतीक्षा रहेगी

-अलबेला खत्री

we love narendra modi



Saturday, August 3, 2013

आतंकवादी अगर हत्यारे हैं तो फिर ये कौन हैं जो व्यापारियों के भेष में मौत की सौदागरी करते हैं



हमारा देश और इस देश का नागरिक जितने बड़े संकट से आज गुज़र

रहा है इतिहास में इसकी कोई मिसाल नहीं मिलती । मौत मौत

और सिर्फ़ मौत का नंगा नाच हो रहा है चारों ओर...............सड़क पे

मौत, ट्रेन में मौत, स्कूल में मौत, अस्पताल में मौत, पुलिस स्टेशन

में मौत, होटल में मौत और घर में बैठे बैठे भी मौत !


आज जब इस पर गहराई से चिन्तन किया तो बहुत सी बातें ज़ेहन

में आयीं ..........वो आपके साथ बांटना चाहता हूँ । भगवान न करे

कि वो सब सच हो, लेकिन अगर वो सब शंकाएं सच हैं तो दोस्तों !

अब जाग जाओ.......और अपनी सुरक्षा अपने हाथ में ले लो

..........क्योंकि अब कानून व्यवस्था से कोई ख़ास उम्मीद नहीं है ।


मैं मेरी सोच और वो सब शंकाएं आपके सामने रखूं तब तक एक

बार इस पर विचार कर लें कि नक्सलवादी और आतंकवादी तो

हत्यारे हैं ही, परन्तु वे अगर हत्यारे हैं तो फिर ये कौन हैं जो

व्यापारियों के भेष में मौत की सौदागरी करते हैं ।


व्यापार में झूठ और हेराफेरी तो लाज़िमी है । क्योंकि व्यापारी

आदमी कितना भी कमाले, उसका मन नहीं भरता ............लेकिन

कमाने का भी कोई कायदा होता है । मिलावट पहले भी होती थी

लेकिन वो मिलावट हम हँसते हँसते मज़ाक में उड़ा देते थे..........जैसे

दूध में पानी की, सब्ज़ियों में पत्तों, डंठलों और नमी की, मसालों में

घटिया और सस्ते मसालों की, देशी घी में डालडा की और मावा में

शक्कर की.........ये मिलावट हमें दुखती तो थी, लेकिन हमारे

स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करके हमारी ज़िन्दगी को बर्बाद नहीं

करती थी।


अब तो दूध ही यूरिया का बन रहा है, मावा भी केमिकल से बन

रहा है, सब्ज़ियों और फलों में घातक रसायनों और रंगों का घालमेल

है, घी के नाम पर सड़ी हुई पशुचर्बी और मसालों में लकड़ी के बुरादे

से ले कर सीमेन्ट तक की मिलावट ???????????????????????


क्या है ये ????????????


अगर नक्सलवादी और आतंकवादी हत्यारे हैं तो फिर ये मिलावट

करने वाले हरामखोर कौन हैं जो हमारे घरों तक घुस आये हैं और

हमारी ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं ?

जय हिन्द
-अलबेला खत्री




Labels

Followers

Powered By Blogger

Blog Archive