तीन सामयिक कह-मुकरियां
निर्दोषों का वह हत्यारा
जन जन ने उसको धिक्कारा
किया कोर्ट ने ठीक हिसाब
क्या सखि अजमल ? नहिं रे कसाब
वो सबका इन्साफ़ करेगा
नहिं हत्याएं माफ़ करेगा
ख़ून का बदला लेगा ख़ून
क्या सखि मुन्सिफ़ ? नहिं कानून
हुआ आज हर्षित मेरा मन
करूँ ख़ूब उनका अभिनन्दन
काम कर दिया उसने अनुपम
क्या सखि मन्नू ? नहिं वोह निकम
-अलबेला खत्री
sadhna sargam,anoop jalota,parthiv gohil,kirtidan gadhvi,albela khatri ki kah-mukri,jai maa hingulaj,hinglaj |
2 comments:
बहुत बढ़िया....
कुँवर जी,
वाह! अद्भुत!
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