Tuesday, July 5, 2011

कृपया नोट करें : यह पोस्ट केवल व्यभिचारियों के लिए आरक्षित है, सदाचारी लोग इसे न पढ़ें





"परधन पत्थर जानिए, पर तिरिया मातु समान"

यह पंक्ति हास्यकवि अलबेला खत्री की नहीं दुराचारी बन्धुओ !

गोस्वामी तुलसीदास जी की है और उन्होंने आप जैसे व्यभिचारियों के

लिए ही यह रचना की थीलिहाज़ा इस पंक्ति का मान रखें और परस्त्री

को पटा-पटू कर उसके साथ दैहिक सम्बन्ध बनाने से बचें


kavita,vyabhichar,xxx,albela khatri,hasya,indian rail

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह!
व्यभिचारी ने लिखी है तो सदाचारी क्या करें!

SANDEEP PANWAR said...

अब तक ना करी आगे भी ना करेंगे

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