"परधन पत्थर जानिए, पर तिरिया मातु समान"
यह पंक्ति हास्यकवि अलबेला खत्री की नहीं दुराचारी बन्धुओ !
गोस्वामी तुलसीदास जी की है और उन्होंने आप जैसे व्यभिचारियों के
लिए ही यह रचना की थी । लिहाज़ा इस पंक्ति का मान रखें और परस्त्री
को पटा-पटू कर उसके साथ दैहिक सम्बन्ध बनाने से बचें ।
2 comments:
वाह!
व्यभिचारी ने लिखी है तो सदाचारी क्या करें!
अब तक ना करी आगे भी ना करेंगे
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