Saturday, July 2, 2011

रंगलाल और नंगलाल ने किया मानसून पर चिन्तन





रंगलाल और नंगलाल आज गम्भीर थे और बरसात पर

चिन्तन कर रहे थे ।


रंगलाल : बेटा नंगू ! जब बरसात के कारण बाढ़ आती है और

लोग मरते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है । अगर भगवान ने चाहा

तो मैं एक ऐसी सुरंग बनाऊंगा जिसमे पूरे शहर के लोग अपने

ज़रूरी सामान के साथ समा सके और स्वयं को बाढ़ के प्रकोप से

बचा सके ।



नंगलाल : बहुत नेक ख्याल है आपका । लेकिन पापा, लोग बाढ़ से ही

नहीं, सूखे से भी परेशान हैं । कई क्षेत्रों में बादल तो आते हैं पर बरसते

नहीं । तो ऐसे बादलों को काबू करने के लिए मैं इत्ता लम्बा लट्ठ

बनाऊंगा जिससे धरती पर बैठे बैठे ही बादल में सुराख़ करके उसे

बरसा सकूँ ।


रंगलाल : शाबास नंगू ! लेकिन इत्ता बड़ा लट्ठ तू रखेगा कहाँ ?


नंगलाल : आपकी सुरंग में..................हा हा हा हा


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4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह!
इसे कहते हैं चिन्तन!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा .

सुनील गज्जाणी said...

नमस्कार !
हास्य है मगर विचारक प्रसंग .बेटे ने नहले पे देहला मारा है , मज़ा है .
सादर

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बढिया लठ और गहरी सुरंग :)

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