Friday, July 22, 2011

क्योंकि चाँद मेल और मेरी प्रेमिका फ़ीमेल है,.................





रंगलाल   -  वाह नंगू वाह !  शाबास !  तेरी पसन्द  पे नाज़ है मुझे

तू  जिस लड़की  से आँख-मटक्का करता है  वो बिलकुल चाँद है चाँद

नंगलाल  -  पापा ...आज तो आपने कह दिया और मैंने सुण लिया

..अब दोबारा  मेरी  प्रेमिका को  कभी चाँद मत कहना ......


रंगलाल  -  क्यों भई ?  क्या हुआ.........?



नंगलाल  -  हुआ कुछ नहीं, पर आपकी  बात बेमेल  है, क्योंकि  चाँद  मेल


और  मेरी प्रेमिका फ़ीमेल है,


इसके  अलावा चाँद  दागदार है और  प्रेमिका आगदार  है



रंगलाल  -  बस इत्ती सी बात........


नंगलाल  -  बात इत्ती सी नहीं है,,,,,,,,,


चाँद पे अब तक 17 लोग चढ़ चुके हैं  जिनमे से एक कुत्ता भी था...हा हा हा



  lokarpan samaroh of 'saagar me bhi sookha hai man' the book of  hasyakavi albela khatri  at mumbai


Sunday, July 17, 2011

बेटा नंगू ! इज्ज़त भी कोई चीज़ होती है .......




रंगलाल  ने गाय-भैंस  खरीदने-बेचने का कारोबार  शुरू किया तो  

नंगलाल भी कहाँ  पीछे रहने वाला था .  उसने भी उसी में रस लेना

 शुरू कर दिया .



नंगलाल  :  ये भैंस कितने की है बापू ?  दूध कितना देती है,  इसके 


साथ क्या  है  और कितनी बार  बच्चे दे  चुकी है ? 


रंगलाल  : नंगू महाराज, ये भैंस है  तीस हज़ार रूपये की...........दूध 


देती है  दिन में कुल  12  लीटर,  इसके साथ मिलेगी   पाडी और अब 

तक कुल  चार बार  बच्चे दे चुकी है 


नंगलाल  :   और वोह...............वोह भैंस कितने की है ?



रंगलाल  :   वोह है   साठ  हज़ार रूपये की....दूध देती नहीं एक बून्द 


भी  और इसके साथ भी नहीं   कोई बच्चा  - क्योंकि अभी तक   यह 

ब्याही नहीं  है


नंगलाल  :  कमाल है........  जो दूध भी नहीं देती,  जिसके साथ कोई 


बच्चा  नहीं और जो अभी तक  ब्याही भी नहीं, उसके साठ  हज़ार 

और   जो दूध भी दे रही है, पाडी भी  जिसके साथ है, उसके केवल 

तीस हज़ार ?  ऐसा क्यों ?


रंगलाल  :   बेटा नंगू !  इज्ज़त भी कोई चीज़ होती  है .......



Thursday, July 7, 2011

बेटा नंगू ! ये मुम्बई का सबसे बड़ा पार्क है ..शिवाजी पार्क !

रंगलाल  और नंगलाल  मुम्बई घूम रहे थे . जे वी पी डी स्कीम,  जुहू चौपाटी,


जुहू तारा, लिंकिंग रोड, बैंड स्टैंड, महिम चर्च होते हुए  जब  शिवाजी पार्क


पहुंचे  तो वहां थोड़ी देर बैठ गये  भेल खाने के लिए .


रंगलाल  -  बेटा नंगू ! ये मुम्बई का  सबसे  बड़ा  पार्क है ..शिवाजी पार्क ! 


बाल ठाकरे साहेब की सारी सभाएं यहीं होती हैं . जानते  हो इस पार्क को


शिवाजी पार्क क्यों कहा जाता है ?


नंगलाल  - जानता हूँ .....यहाँ शिवाजी ने अपना घोडा पार्क कर रखा है


इसलिए...............हा हा हा हा

shankar sahni se suniye hasyakavi albela khatri ki hasya-vyangya rachna

Tuesday, July 5, 2011

कृपया नोट करें : यह पोस्ट केवल व्यभिचारियों के लिए आरक्षित है, सदाचारी लोग इसे न पढ़ें





"परधन पत्थर जानिए, पर तिरिया मातु समान"

यह पंक्ति हास्यकवि अलबेला खत्री की नहीं दुराचारी बन्धुओ !

गोस्वामी तुलसीदास जी की है और उन्होंने आप जैसे व्यभिचारियों के

लिए ही यह रचना की थीलिहाज़ा इस पंक्ति का मान रखें और परस्त्री

को पटा-पटू कर उसके साथ दैहिक सम्बन्ध बनाने से बचें


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Saturday, July 2, 2011

रंगलाल और नंगलाल ने किया मानसून पर चिन्तन





रंगलाल और नंगलाल आज गम्भीर थे और बरसात पर

चिन्तन कर रहे थे ।


रंगलाल : बेटा नंगू ! जब बरसात के कारण बाढ़ आती है और

लोग मरते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है । अगर भगवान ने चाहा

तो मैं एक ऐसी सुरंग बनाऊंगा जिसमे पूरे शहर के लोग अपने

ज़रूरी सामान के साथ समा सके और स्वयं को बाढ़ के प्रकोप से

बचा सके ।



नंगलाल : बहुत नेक ख्याल है आपका । लेकिन पापा, लोग बाढ़ से ही

नहीं, सूखे से भी परेशान हैं । कई क्षेत्रों में बादल तो आते हैं पर बरसते

नहीं । तो ऐसे बादलों को काबू करने के लिए मैं इत्ता लम्बा लट्ठ

बनाऊंगा जिससे धरती पर बैठे बैठे ही बादल में सुराख़ करके उसे

बरसा सकूँ ।


रंगलाल : शाबास नंगू ! लेकिन इत्ता बड़ा लट्ठ तू रखेगा कहाँ ?


नंगलाल : आपकी सुरंग में..................हा हा हा हा


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Friday, July 1, 2011

जब रिश्वत में तीन वरदान देवता ख़ुद दे रहे हैं तो भारत से भ्रष्टाचार कौन मिटा सकता है ?





यमराज
के एजेन्ट रंगलाल को लेने आये थे लेकिन मिलते -जुलते

नाम की वजह से भूलवश अपने साथ नंगलाल को ले गयेऊपर जा कर

पता
लगा कि ये तो गलत आदमी गया


यमराज - जाओ भाई जाओ, वापिस जाओ


नंगलाल - ऐसे कैसे जाओ ? और

कहाँ जाओ ? क्यूँ जाओ ? इतनी मुश्किल से तो आया हूँ...........


यमराज - देखो प्यारे, तुम गलती से

गये हो, यहाँ तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है


नंगलाल - ज़रूरत तो वहां भी नहीं सरजी ! अपन तो यहीं रहेंगे

...
और अगर भेजना ही है तो फिर मेरे

साथ ढंग से बात करो..और तीन

वरदान दो, क्योंकि मैं जानता हूँ देवताओं से कोई चूक होजाती है तो वे

सामने वाले का मुँह बन्द करने के लिए उसे वरदान देते हैं


यमराज - मांग लाले मांग ! क्या चाहिए.........


नंगलाल - पहला वरदान : मुझे इतना धन मिल जाये कि मेरी सौ पीढियां भी उडाये तो कम पड़े...


यमराज - डन !


नंगलाल - दूसरा वरदान : मेरे माँ बाप फिर जवान हो जाएँ और उन्हें कभी कोई तकलीफ़ हो


यमराज - ये भी डन !


नंगलाल - मेरा काम होगया, माँ बाप का भी हो गया । अब तीसरा वरदान ऐसा दो बोस ! कि हिन्दुस्तान से भ्रष्टाचार बिलकुल ख़त्म हो जाये ।


अब के यमराज को बहुत गुस्सा आया । बहुत बोले तो बहुत गुस्सा आया लेकिन वो कुछ बोले नहीं । परन्तु उनके भैंसे से बर्दाश्त नहीं हुआ । उसने एक टक्कर मारी और बोला - हरामखोर आदमी.........जब रिश्वत में तीन वरदान देवता ख़ुद दे रहे हैं तो भारत से भ्रष्टाचार कौन मिटा सकता है ?

तकनीकी दुविधा के कारण ये पोस्ट ढंग से सैट नहीं हो सकी...क्षमा चाहता हूँ ..लेकिन देने को वरदान एक भी नहीं ...हा हा हा हा


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