हालाँकि ये किसी भी कवि के लिए गर्व की बात होती है कि उसकी
रचनाओं को लोग याद करके औरों को सुनाये...........परन्तु कवि
को ख़ुशी केवल तब होती है जब उसकी किसी ख़ास और उम्दा
कविता को ही लोग इस प्रकार विस्तार दें ।
बात जब व्यावसायिक मंच की हो और कविता कविता नहीं बल्कि
एक बिकाऊ सामान की तरह तैयार की गई हो तब कोई भी ये
बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसके मंच जमाऊ टोटकों को अन्य लोग
सुना सुना कर इतनी पुरानी करदे कि जब उसका मौलिक
रचनाकार सुनाये तो लोग कहें कि भाई ये तो सुना हुआ है.....ये
तो उसका है वगैरह
मैंने इस वेदना को बहुत झेला है और आज भी झेल रहा हूँ । लेकिन
अब तो ये बीमारी इतनी फ़ैल गई है कि बर्दाश्त से बाहर हो गई है ।
अनेकानेक लिक्खाड़ कवि इससे परेशां हैं और उठाईगीर मज़े
कर रहे हैं ।
ताज़ा घटना है इसलिए बताता हूँ ........जिस दिन हाई कोर्ट ने
अयोध्या पर निर्णय दिया था और कुछ ख़ास लोगों ने इसके विरुद्ध
सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कही थी उस दिन मैंने एक पैरोडी
अपने मंचीय काव्यपाठ के लिए लिखी थी " राजीव कह गये
सोनिया से, ऐसा कलजुग आएगा - कहाँ हुआ था जनम राम का,
सुप्रीम कोर्ट बताएगा "
यह मैंने कुछ मंचों पर सुनाई भी और कुछ मित्रों को sms भी
की.....नवरात्रि में राजस्थान के कवि-सम्मेलनों में भी यह ख़ूब
ताली बजवाऊ पंक्तियाँ साबित हुईं लेकिन आज हालत ये है
कि मैं तो हूँ एक और एक ही जगह सुना सकता हूँ जबकि देश
बहुत बड़ा है ...कम से कम बीस कवि सम्मेलन रोज़ होते हैं
इसलिए कुछ भले लोग मौके का लाभ उठा कर सुना डालते हैं
और जम भी जाते हैं............
जमो भाई जमो..... अपनेराम किसी के कुछ तो काम आ रहे हैं
........यही सोच कर ख़ुश हो लेते हैं ...हा हा हा हा हा
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7 comments:
OH..तो यह आपकी रचना है ..हम तक यह इस रूप मे पहुंची .. राम्चन्द्र कह गये सिया से ऐसा कलयुग आयेगा राम कहाँ पैदा हुए थे हाइकोर्ट बतायेगा .. । वैसे यह सही बात है , मैने भी साक्षरता अभियान के समय कई जन गीत और नारे लिखे , आज हर कोई उन्हे अपने नाम से सुना देता है हाहाहा..
शरद जी सही कह रहे हैं हमे भी यह एस एम एस इस रूप में आ चुका है। आज पता भी चला की मूल रूप से यह आपकी रचना है। वैसे अलबेला जी फ़िक्र न करें रचना में दम है तभी तो दूसरे इसे सुना कर वाह-वाही ले पा रहे हैं। अच्छा है आपको इश्वर ने यह सुअवसर प्रदान किया है कि आप किसी की रोजी-रोटी का जरिया बन रहे हैं...:)
@ शरद कोकस जी
@ एन के पाण्डे जी
____नमस्कार और धन्यवाद आपके आगमन पर
आपने जो रूप देखा sms में, वह मेरी दृष्टि से गलत है .
एक तो इसलिए कि "रामचन्द्र कह गये सिया से" वास्तविक गीत है इसमें पैरोडी का कोई कमाल नहीं है साथ ही मीटर से भी बाहर है
दूसरा ख़ास कारण ये है कि ये बात ही गलत है कि रामचंद्र कह गये सिया से----
अरे भाई इतिहास साक्षी है रामचंद्र जी पहले नहीं गये थे ....पहले तो सीता जी गई थीं ----जबकि मैंने लिखा "राजीव कह गये सोनिया से" इसलिए भी सही है क्योंकि राजीव सोनिया जी से पहले गये हैं और यह सामयिकता का एहसास भी कराता है
वैसे..........इस तुकबंदी की रचना पर मुझे कोई गर्व नहीं है लेकिन मेरी तकलीफ़ ये है भाई कि मंच पर सुनाने वाले इसे कम से कम मेरा नाम लेकर तो सुनाएँ...
....अब क्या किया जाए अलबेलाजी!...सही कहा आपने!....अच्छी रचनाओं को अपनी बता कर सुनाने वाले कवियों की जमात का, आप क्या बिगाड लोगे?...ये कभी नहीं सुधरेंगे!
oh ab kavi bhi chor hone lage....unhe sharm bhi nahi aati..?
श्री कृष्न कह गए पार्थ से
ऐसा कलियुग आएगा
कर्म करेगा कोई
उसका फल कोई ले जाएगा
गीत भी होंगे, मीत भी होंगे
लेकिन प्रीत नहीं होगी
धन जीतेगा, तन जीतेगा
मन की जीत नहीं होगी
बात बात में बाप बदलकर
बेटा काम चलाएगा।
छंद भी होंगे, बंद भी होंगे
लेकिन गंद बहुत होगी
पैरोड़ी अलबेला की
तब नत्थू खैरा गाएगा
घायल की गति...घायल ही जाने...
खुद मेरी भी चार कहानियाँ चोरी हो चुकी हैं अब तक ..
लेकिन शुक्र है उस ऊपर बैठे परम पिता परमात्मा का कि उसने मुझे इतना लंबा लिखने का हुनर दिया कि मेरी रचना को चोरी कर...मंच पर पढ़ने के बारे में सोचने से पहले ही उसे चोरी करने वाला अपने स्टैमिने की तरफ ताक खुद बा खुद ही हांफने लगेगा :-)
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