Saturday, September 18, 2010

मैं ख़ुद ही चौराहे पे जा कर खड़ा हो सकता हूँ



नंगलाल -

पापा, आप दो लाख रूपया ढीला करो

तो मैं चौराहे पर आपकी मूर्ति लगवा सकता हूँ


रंगलाल -

बेटा, मूर्ति का क्या करना है,

दो लाख कोई मुझे दे दे तो मैं ख़ुद ही

चौराहे पे जा कर खड़ा हो सकता हूँ




5 comments:

Shah Nawaz said...

:-) बेटा नम्बरी तो बाप दस नम्बरी.....


व्यंग्य: युवराज और विपक्ष का नाटक

समयचक्र said...

अरे वाह ये नंग लाल और रंग लाल तो बड़े विकट है जी.... हा हा बढ़िया जोग..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

नंगलाल और रंगलाल के तो नाम से ही आभास हो जाता है कि यह लोग अपने नाम के अनुरूप ही अपने काम करेंगे!

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! खुद का सही उपयोग ।

Unknown said...

PAHLEE BAAR PADHA HAI SUNA SUNAYA YE AAPKA MAI;IK JOKE

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