Saturday, July 17, 2010

तो मैं तुझे मनुष्य नहीं, ज़ालिम राक्षस समझता हूँ




ज़ोरदार वह है जो दबे, ही दूसरों को दबने दे

बल्कि जो दबाया जा रहा हो उसे सहारा भी दे

यदि मैं तुझसे इसलिए दबता हूँ कि तू ज़ोरदार है,

मुझे नुक्सान पहुंचा सकता है तो मैं तुझे मनुष्य नहीं,

ज़ालिम राक्षस समझता हूँ

और मेरे इस प्रकार सर झुकाने से तू राज़ी होता है

तो तेरे बराबर कोई मूर्ख नहीं


- हरिभाऊ उपाध्याय




2 comments:

शिवम् मिश्रा said...

सत्य वचन महाराज !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया!
--
डायरी में अंकित कर लिया है!

Labels

Followers

Powered By Blogger

Blog Archive