Tuesday, November 3, 2009

ताऊ रामपुरिया का मूड और हसीना की जुल्फें



कहना मत किसी से ......एक राज़ की बात बता रहा हूँ ।



ताऊ रामपुरिया ने मूड में आ कर अपनी एक परिचित हसीना

से कहा - प्रिये, मैं तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से खेलना चाहता हूँ ।


हसीना को दया आ गई ।

उसने अपनी विग उतार कर ताऊ के

हाथ में पकड़ा दी ।

बोली - ले ताऊ, खेलता बैठ ,

शाम नै वापिस कर दियो ...........हा हा हा हा हा हा


6 comments:

शरद कोकास said...

पता नहीं कैसे कॉलेज के ज़माने का किसी मज़ाहिया शायर का एक शेर याद आ गया " रात क्या है तेरी ज़ुल्फ का साया है / तू अगर सर मुंडा दे तो सवेरा हो जाये "

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा लपेटा है, ताऊ को!

M VERMA said...

हसीना के इस कथन पर तो
ताऊ को आ गया होगा पसीना

डॉ टी एस दराल said...

शाम नै वापिस कर दियो ..धो कर --हा हा हा !!

राज भाटिय़ा said...

वाह ताऊ बेचारा, मजेदार

Urmi said...

बड़ा मज़ेदार! बहुत खूब!

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