Wednesday, October 28, 2009

तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे हमारे बच्चों को पीट रहे हैं

एक विधवा के चार बच्चे
एक विधुर के चार बच्चे
दोनों ने आपस में शादी कर ली
फ़िर हो गए चार बच्चे
कुल बारह बच्चे
बहुत अच्छे
एक दिन पत्नी ने पति को फोन किया
ऐ जी सुनते हो ..........
जल्दी से घर पे आओ
घर को गृहयुद्ध से बचाओ
क्योंकि आप वहाँ
ऑफिस में कलम घसीट रहे हैं
और यहाँ
तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे मिलकर
हमारे बच्चों को पीट रहे हैं ___हा हा हा हा

10 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

मजा आ गया ...

धन्यवाद अलबेला जी |

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

खत्री साहब, हमारे देश में ये जो मर काट मची है वह भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है : अरुण यह मधुमय देश हमारा....जहां पहुच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा...'

और इसी सहारे की वजह से वो भी अपने बचे लेकर यहाँ आये, मेरे बच्चे पहले से ही यहाँ मौजूद थे और फिर जब उनके और हमारे मिलन के बाद के बच्चे हुए तो नतीजा आज हम देख रहे है कहे गोधरा, कही बाबरी कहीं मावो नक्सल कही कुछ कही कुछ....!

Kusum Thakur said...

वाह मज़ा आ गया ....अलबेला जी, बहुत बहुत धन्यवाद !!

विनोद कुमार पांडेय said...

Ultimate Story...maja aa gaya albela ji jawab nahi hai aapka..sundar rachana..dhanywaad.

संगीता पुरी said...

वाह !!

Unknown said...

हा हा हा हा

क्या बात है! मेरे बच्चे भी हैं, तुम्हारे बच्चे भी हैं और हमारे बच्चे भी हैं!! वाह वाह!!!

BAD FAITH said...

धन्यवाद अलबेला जी .रोचक रचना.

M VERMA said...

बहुत सुन्दर जी
और फिर गोदियाल जी ने गूढार्थ भी बता दिया.

PD said...

ये ब्लौगिंग पर कमेंट था या साधारण चुटकुला? जो भी था, बहुत बढ़िया था.. :)

डॉ टी एस दराल said...

तुम्हारे + मेरे = हमारे .
वाह, क्या गणित है.
हा हा हा !!

Labels

Followers

Powered By Blogger

Blog Archive