Sunday, January 12, 2014

इस झूठी और बनावटी कहानी को समझने के लिए अब नीचे दिए गए असली प्रमाण देखिये



एक मशहूर चित्रकार ने बहुत ही ख़ूबसूरत चित्र बनाया और उसे एक सार्वजनिक स्थल पर लगा दिया परन्तु नीचे अपना नाम नहीं लिखा ---कलाप्रेमी लोग आते, देखते और प्रशंसा करते हुए निकल जाते लेकिन ये नहीं जान पाते कि यह ख़ूबसूरत कलाकारी आखिर है किसकी ?  संयोग से वहाँ एक नया नया चित्रकार आया, उसने भी जब देखा कि चित्र के नीचे चित्रकार का नाम नहीं है तो उसने मौके का लाभ उठाते हुए  उस पर अपना नाम लिख कर दस्तखत कर दिए और देखते ही देखते बड़ा मशहूर हो गया

इस झूठी और बनावटी कहानी को समझने के लिए अब नीचे दिए गए असली प्रमाण देखिये  और फिर विचार कीजिये कि मैं कहना क्या चाहता हूँ ? बात पूरी समझ जाएँ तो मुझे भी बताना :


हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
-ग़ालिब

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ  ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं
-फ़िराक़ गोरखपुरी

सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है
न हाथी है ना घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है
-शैलेन्द्र

भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जायें
मोहब्बत हो गयी जिनको वो दीवाने कहाँ जायें
-शकील बदायूँनी

बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है
हवाओं रागिनी गाओ मेरा महबूब आया है
-हसरत जयपुरी

सुहानी चाँदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं
तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देतीं
-आनंद बख्शी

पवन जब गुनगुनाती है तुम्हारी याद आती है
घटा घनघोर छाती है, तुम्हारी याद  आती है
बर्क़ जब कड़कड़ाती हैं तुम्हारी याद आती है
कि जब बरसात आती है, तुम्हारी याद आती है
-अलबेला खत्री

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
- कुमार विषवास

मेरे कहने का मतलब है कि इस मीटर में लिखने की परम्परा बहुत पुरानी है और मुशायरों में मशहूर है लेकिन आज इस मीटर पर कोई भी लिखता है तो उसे कुमार विष वास से प्रभावित बताया जाता है - ठीक उसी प्रकार जैसे गोवा  के मुख्यमन्त्री की सादगी व आम आदमियत बहुत पुरानी है, लेकिन आजकल इसे झाड़ू वालों की ईज़ाद बताया जा रहा है

जय हिन्द  !
अलबेला खत्री









3 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! अलबेला अंदाज मे आपने बात कही..!!!पूर्णतया सहमत।


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (13-01-2014) को "लोहिड़ी की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1491) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हर्षोल्लास के पर्व लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रविकर said...

पहले तो प्रतिपल पगा, जगा जगा विश्वास |
किन्तु लगा ललकारने, अट्ठहास आकास |

अट्ठहास आकास, अहंकारी बन जाए |
कर दे सत्यानाश, पुण्य अपने निबटाये |

रविकर जोश खरोश, बात अच्छे से कह ले ।
आज खींचता टांग, प्रशंसा कर के पहले ॥

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