Wednesday, August 22, 2012

ओपन बुक्स ऑन लाइन से ज़रूर जुड़ना चाहिए.

सिल्कसिटी सूरत के सर्वप्रथम एवं सुप्रतिष्ठित दैनिक लोकतेज़ के मुख्य पृष्ठ पर इन दिनों मेरी एक "कह-मुकरी" रोज़ाना प्रकाशित हो रही है. 
ओपन बुक्स ऑन लाइन के माननीय प्रबन्धन सदस्य  सर्वश्री  योगराज प्रभाकर, अम्बरीश श्रीवास्तव, गणेश जी बागी, सौरभ पाण्डेय समेत अन्य विद्वानों के सान्निध्य में कविता के अनेक आयामों को सीखने का लाभ लेते हुए  मैं  स्वयं को पहले से ज़्यादा ऊर्जस्वित और परिष्कृत पा रहा हूँ .

ओ बी ओ के प्रधान संपादक योगराज जी से प्रेरित हो कर मैंने कह-मुकरियां लिखना शुरू किया  और जब इसमें रस आने लगा तो लोकतेज़ के संपादक कुलदीप सनाढ्य से कहा कि मैं  इस विधा पर लम्बा काम करना चाहता हूँ  तो उन्होंने एक रचना रोज़ाना प्रकाशित करने का निर्णय तुरन्त ले लिया .

मेरे प्यारे कवि/कवयित्री मित्रो ! अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूँ  कि जो लोग लगातार नया लिखते रहते हैं  और सचमुच  साहित्य को समृद्ध करना चाहते हैं उन्हें ओपन बुक्स ऑन लाइन से ज़रूर जुड़ना चाहिए.

अगर अभी तक आप सदस्य नहीं बने हैं............तो अभी बनिए..........क्योंकि  हिन्दी जगत में इसके अलावा ऐसी दूसरी कोई चौपाल नहीं  जहाँ कविता लेखन  सिखाने के लिए सृजन के इतने महारथी एक साथ उपलब्ध हों .

जय ओ बी ओ
जय हिन्दी
जय जय हिन्द !

_अलबेला खत्री 




2 comments:

Ambarish Srivastava said...

कह-मुकरी को पुनः लोकप्रिय बनाने की दिशा में आपका यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है ! बहुत-बहुत बधाई मित्रवर !
अम्बरीष श्रीवास्तव

रविकर said...

बहुत-बहुत बधाई ||

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