Monday, September 20, 2010

रंगलाल का हाल बेहाल मुम्बई में..........


रंगलाल को बहुत ज़ोर से रहा थालेकिन वो कर नहीं पा रहा थाकरने में और कोई दुविधा नहीं थीपरन्तु करता कैसेमुम्बई की भीड़ में एकान्त की सुविधा नहीं थीबेचारे के साथ अजीब टंटा हो गयारोके रोके जब पूरा एक घंटा हो गयाभीतर के जल का ज्वारजब सब्र के बाँध से भी बड़ा हो गयातो उसने आव देखा तावएक झाड़ की ले ली आड़औरदुनिया वालों से मुँह फेर कर खड़ा हो गयाएक पुलिस वाला देख रहा थावो आयाडंडा दिखाया और बोला - चलो !रंगलाल बोला - चलो..............चालोअरे हालो रे हालो........पण मोटा भाई पहले सुबूत तो उठालो !आज ये सामान यहाँ से नहीं उठाओगे

तो कल अदालत में क्या दिखाओगे ?

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8 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत खूब

Aruna Kapoor said...

wow!....bahoot khoob!...ab policewaala kyaa kar lega?

पद्म सिंह said...

बढ़िया ..

शरद कोकास said...

पुलिस प्रशासन पर करारा व्यंग्य है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हा हा ...बहुत खूब ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है!
--

यह सूचना इस लिए दे रहा हूँ क्योंकि चर्चा मंच पत्रिका के आज के अंक में आपकी रचना ली गई है!
http://lamhon-ka-safar.blogspot.com/2010/09/priye-hai-mujhe-mera-pagalpan.html

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! मज़ाक मज़ाक में बड़ी बात कह गए ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

:) :)

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