Thursday, July 1, 2010

कल अदालत में क्या दिखाओगे ?


नंगलाल को बहुत ज़ोर से रहा था

मगर वो कर नहीं पा रहा था

करने में और कोई दुविधा नहीं थी

परन्तु मुम्बई की भीड़ में

एकान्त की सुविधा नहीं थी

बेचारे के साथ टंटा हो गया

रोके रोके जब घंटा हो गया

और भीतर के जल का ज्वार जब सब्र के बाँध से बड़ा हो गया

तो मजबूरी में उसने आव देखा ताव

एक झाड़ की लेली आड़ और लोगों से मुँह फेर कर खड़ा हो गया

एक पुलिस वाला देख रहा था

वो आया, डंडा दिखाया और बोला - चलो !

नंगलाल भी पक्का गुजराती था

बोला- चलो !

चालो................अरे हालो रे हालो...............

पण मोटा भाई ! तुम ये सुबूत तो उठालो

अगर तुम ये सामान नहीं उठाओगे

तो कल अदालत में क्या दिखाओगे ?



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7 comments:

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! भाषाई मार गई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छे!

राजीव तनेजा said...

मजेदार

राज भाटिय़ा said...

:)

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

बिना सबूत के अदालत में???? हा हा हा ......... हा हा हा
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

arvind said...

हा हा हा ! बहुत अच्छे!

दीनदयाल शर्मा said...

अदालती व्यवस्था पर करारा व्यंग्य....बधाई... taabartoli.blogspot.com

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