Sunday, March 21, 2010

फ़िल्मों का हम पर बहुत असर होता है भाई...........

5 comments:

पी के शर्मा said...

वाह वाह वाह
सच है फिल्‍मी असर

ओम पुरोहित'कागद' said...

फिल्मोँ का असर तो जीवन के हर पक्ष पर पड़ता ही है।घरोँ मेँ,हिँसा,अपसंस्क्रति व अनुशासनहीनता फिल्मोँ के माध्यम से पसरी है।घरोँ मेँ आम आदमी का लिविँग स्टंड़र्ड़ भी बदला है।घर की औरतेँ स्वयं को मधुबाला से ऐश्वर्या तक और पुरुष जितन्द्र,धर्मेन्द्र, अमिताभ,सलमान व शहारुख से कम नहीँ समझते।यही नहीँ घर मेँ छोटे बड़े का भेद व मान सम्मान जैसा कुछ भी नहीँ बचा।पति पत्नी आपस मेँ परस्परेक दृसरे को नाम से पुकारते हैँ।हमारी संसक्रति जगह छोड़ रही है और फिल्मोँ के माध्यम से पाश्चात्य संस्क्रति पसर रही है।

ओम पुरोहित'कागद' said...

जय हो अलबेला जी! कुछ मुक्तक कुछ सवैये परोसो अपने ब्लाग पर!अरसा हो गया आपको साहित्यिक मूड मेँ पढ़े सुने।

ओम पुरोहित'कागद' said...

श्रीगंगनगर की देन है देश को रेड ब्लेड माल्टा,किकर व्हिस्की, केशर कस्तूरी,हरी,गुलाब,गुलाबो गेहूं,किन्नू,जगजीत सिँह,गुलशन छाबड़ा, ख्याली सहारण,कुलविन्द्र सिँह कंग,सरल कवि व अलबेला खत्री मगर इन दिनोँ इसके पास केवल किकर व्हिसकी ही बची है।

Narendra Vyas said...

नमस्‍कार अलबेला जी। बेहद अच्‍छी लगी आपकी ये हास्‍य रचना| आपने हास्‍य-हास्‍य में आजकल फिल्‍मी माहौल का आम जिन्‍दगी पर पडने वाले असर को बडी खूबसूरती से व्‍यक्‍त किया है| आपकी ये रचना सुनकर काका हाथरसी की एक हास्‍य रचना जिसमें उन्‍होंने मंत्रीमंडल में फिल्‍मों के असर को व्‍यक्‍त किया है, याद आ गया| एक बेहद स्‍तरीय और संदेशपरक रचना पर आपका कोटिश: आभार।।

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