Thursday, February 4, 2010

चर्चा है भाई चर्चा है ...चर्चा है भाई चर्चा है



दाल है थोड़ी , मर्चा ज़्यादा


आय ज़रा सी खर्चा ज़्यादा


यकीं हो तो देखलो ख़ुद ही


चिट्ठे कम हैं, चर्चा ज़्यादा





3 comments:

दीपक 'मशाल' said...

एकदम दुरुस्त फ़रमाया साहब..साथ ही बहुत दुखी और शर्मिंदा हूँ कि कैंसर विज्ञानी होते हुए भी मैंने भी कैंसर पर आज आलेख ना लिखा...लेकिन विश्वास मानिये कि आपकी पोस्ट पढ़ने से पहले आज प्रयोगशाला में यही सोच रहा था कि जो मैं पढता हूँ उसका सारांश हिंदी में लिख कर लोगों तक पहुंचाऊं.. इस बाबत एक ज्येष्ठ डॉक्टर से बात भी की.. वादा करता हूँ जल्दी ही :)
इस तरह की कई पोस्ट आपको दूंगा...
जय हिंद...

Unknown said...

धन्यवाद प्रियवर मशाल जी !
मेरा यह पोस्ट लिखने का उद्देश्य ही ये था कि इस सार्वजनिक मंच से जुड़े लोग सामाजिक सरोकारों के प्रति सचेत रहें और सार्थक लेखन करें

मेरा काम तो लोगों को हँसाना है .........मैं हँसा रहा हूँ लेकिन जिस प्रकार आपने पण्डित प्रदीप जी को आज याद किया वह प्रणम्य था . पण्डित प्रदीप जी से मेरा तो कई बार साक्षात्कार भी हुआ था और मै तो उन्हें एक सन्त की तरह मानता हूँ लेकिन लोगों ने भुला दिया ...दुःख हुआ आपको...वैसे ही कैंसर जैसे महारोग से पूरी दुनिया परेशान है लेकिन हिन्दी ब्लोगिंग में इतने डाक्टर के होते हुए भी कोई आलेख इस विषय पर न मिला तो लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मैंने ये लिखा..आपके समर्थन से मुझे बल मिला है ..धन्यवाद !

जय हिन्द !

Udan Tashtari said...

सही कह रहे हैं.

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