Wednesday, January 20, 2010

कभी न कलम मिटे देवी माता शारदे !




सुरों
की सरिता आप,

शब्दों की संहिता आप

कवि की कविता आप देवी माता शारदे !


हंस पे सवार नित,

वीणा की झंकार नित

सुनती पुकार नित देवी माता शारदे !


थोड़ा सा मैं ज्ञान माँगूं,

विद्याधन दान माँगूं

इक वरदान माँगूं देवी माता शारदे !


जन पे ज़ुलम मिटे,

भारत से तम मिटे,

कभी कलम मिटे देवी माता शारदे !



3 comments:

रावेंद्रकुमार रवि said...

यहाँ तो ठीक है,
पर दूसरे ब्लॉग पर आपकी
हा ... हा ... हा ...
बहुत बुरी लगी!

--
"सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"

--
क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
--
संपादक : सरस पायस

डॉ टी एस दराल said...

शुभकामनायें।

Udan Tashtari said...

वन्दन देवी माता शारदे !

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