Sunday, November 1, 2009

उड़नतश्तरी वाले समीरलालजी ! क्या यह सच है ?

कल ताऊ रामपुरियाजी ने अपने समीरलाल जी के बारे में

एक ऐसी बात बताई जिससे मुझे हँसी तो बहुत आई

पर भरोसा नहीं हुआ कि क्या ऐसा भी हो सकता है ?

आइये लाल साहेब से ही पूछते हैं कि

ये सच है या अफ़वाह ?


ताउजी ने बताया कि समीरलालजी ने रात के दो बजे

बियर बार के मालिक को फोन किया

- क्यों भाई तुम्हारा ये बार कब खुलेगा ?

बार वाला बोला - सुबह नौ बजे

फ़िर थोड़ी देर में फोन किया - क्यों जी, कब खुलेगा ?

जवाब वही - सुबह नौ बजे।

समीर जी सारी रात लगे रहे और थोड़ी थोड़ी देर में

फोन करते रहे ।

परेशान होकर बार वाला बोला - मेरे बाप, क्यों दुखी करते हो ?

भाड़ में गई मेरी बार .....

तुम तो अपना पता बताओ

मैं अभी तुम्हारे घर पर माल भेज देता हूँ .........

समीरजी बोले - तेरे पास बचा क्या है जो तू भेजेगा ?

तेरी पूरी बार में एक बूँद भी होती तो

तुझे फोन नहीं करता समझे !

तू अपनी बार खोल तो मैं दूसरी में जाऊं....


बार वाला हैरान - तुम हो कहाँ ?

समीरजी - तेरी बार में ही बैठा हूँ .........हा हा हा हा हा हा हा

19 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

अरे वाह कमाल है पूरे बार की बोतल गटक गये...मजेदार वाक़या बहुत खूब..धन्यवाद!!

Gyan Darpan said...

हा हा हा हा हा हा हा बार वाला सोता रहा और उसकी बार में पूरी रात बिक्री होती रही | सुबह आकर सबसे पहले उसने बिल बनाया होगा !

M VERMA said...

मुझे भी कौतूहल है क्या यह सच है.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वाह-सुबह-सुबह बढिया हास्य है- अलबेला जी बधाई हो।

Udan Tashtari said...

हा हा हा हा हा हा हा ...पूरा नशा उतार दिया भाई...फिर से जीरो से गिनती चालू करता हूँ ...ह्यूइच!!!

Udan Tashtari said...

वर्मा जी, आपको सच की पड़ी है और यहाँ कम पड़ गई...रात भर परेशान रहे...हा हा!!..अलबेला भी नहीं आये मदद को..कि एक पव्वा ही दबाये लाते साथ में. :)

Udan Tashtari said...

हंस लो ललित बाबू...जब पिलाना पड़ेगी..तब नापना..हँसी का नामो निशान न होगा..हा हा!! इन्तजाम सॉलिड रखना भाई!!

Randhir Singh Suman said...

तेरी बार में ही बैठा हूँ ..bhai mat po . nice

Unknown said...

समीरलालजी !

आपके लिए हम भी एक बार बना कर बैठे हैं छोटी सी.... कि समीरलाल जी आयेंगे उनको हम पिलायेंगे...

लेकिन ललितजी ने कहा कि समीरलालजी छोटी मोटी में नहीं बल्कि अपने वज़न के हिसाब से केवल मोटी मोटी बार में ही जाते हैं इसलिए मजबूरन मुझे ही उसमे बैठना पड़ता है ...हा हा हा

रविकांत पाण्डेय said...

सुना है, अगस्त्य ऋषि पूरा समंदर पी गये थे...तो पीने की क्षमता तो ऋषि-मुनियों के वंशज भारतवासियों को विरासत में ही मिली हुई है। फ़िर कैसा आश्चर्य!बधाई हो गुरू समीर जी, आपने पुरखों का मस्तक नीचा नहीं होने दिया!...:)

Unknown said...

नहीं नहीं समीरलालजी,
ऐसा मत करना........
ये रविकांत बहुत चालाक आदमी है
अगस्त्य ऋषि की बड़ी बड़ी मिसालें दे कर ये षडयंत्र पूर्वक आपसे सारा माल बाहर निकालने को कह रहा है क्योंकि अगस्त्य जी महाराज ने भी ऐसा ही किया था...उनकी बात और थी वे पानी पिए थे..........आप अगर वापिस उगल देंगे तो फ़िर कोई नई बार ढूंढनी पड़ेगी क्योंकि पुरानी में तो आपने कुछ छोड़ा ही नहीं ...हा हा हा हा

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

:)

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये हुई न कोई बात।

समयचक्र said...

हा हा हा हा हा हा हा

डॉ टी एस दराल said...

अलबेला जी, एक बात तो बताना भूल ही गए.
समीर लाल जी, बीयर नीट पीते हैं.
तभी तो इतनी पी पाए. हा हा हा !!!

बवाल said...

कौन टाइप से पीने लगे हो यार लाल साब आप। ये छि छी बात नहीं हैं क्या। हाँ नहीं तो।

Satish Saxena said...

मज़ा आ गया...शुभकामनायें अलबेला जी !

ताऊ रामपुरिया said...

बेचारा बार वाला.:) अब बार बंद करते समय चेक करके बंद करेगा.:)

रामराम.

राज भाटिय़ा said...

अरे बाप रे यह तो पक्के ओर ईमान दार ग्राहक निकले:)

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