Monday, October 26, 2009

लोभी तो देखे बहुत, आज देखलो लोभा...........

प्यारे ब्लोगर बन्धुओं और बहनों !


अब मैं एक संस्मरण माला आरम्भ कर रहा हूँ

जिसमें
कुछ ख़ास हिन्दी
कवियों,

हास्य कवि सम्मेलनों


और टेलिविज़न शो के कुछ ख़ास
किस्सों को

आपके समक्ष बयान करूंगा


इस आलेख माला का कोई भी पात्र,

स्थान व समय काल्पनिक नहीं होगा ,

सभी कुछ वास्तविक होगा और पूर्णतः बेपर्दा होगा



यह सिर्फ़ आपके स्वस्थ मनोरंजन के लिए कर रहा हूँ

फ़िर भी किसी
जीवित या मृत आत्मा को इससे ठेस

पहुँचने वाली हो तो कृपया अपनी
आपत्ति पहले से ही

दर्ज़ करादें ताकि मैं उन के विषय पर चुप ही रहूँ


क्योंकि एक बार पोस्ट प्रकाशित होने पर

उसका
खण्डन छापने में कोई
मज़ा नहीं है .................



लोभी तो देखे बहुत, आज देखलो लोभा


हिन्दी हास्य कवियों कवि सम्मेलनों को तबेलों और

धर्मशालाओं
से उठा कर
पाँच सितारा होटलों तक पहुंचाने वाले

मंच संचालन के पहले और वास्तविक
हास्य सम्राट

स्वर्गीय रामरिख "मनहर" अपने अलमस्त स्वभाव,

अनूठे मंच संचालन और ज़बरदस्त ठहाकों के लिए तो

मशहूर
थे ही प्रतिउत्पन्न्मति में
भी उनका

कोई सानी नहीं था................


एक बार आयकर विभाग मुंबई मुख्यालय में

कवि
-सम्मेलन चल रहा था
एक कन्या बार बार

उनके पास जाती और कहती- मुझे भी एक कविता

सुनानी हैमनहर जी चूंकि नई प्रतिभाओं को सदा बढ़ावा

देते थे इसलिए
उन्होंने उसे माइक पर बुला तो लिया

लेकिन नाम नहीं जानते थे तो वहीं
मंच पर अपने

संचालकीय माइक से ही पूछा -'नाम क्या है आपका ?'


वो बोली-'शोभा'


अब चूंकि मनहर जी उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते थे

और
माइक पर भी
बुला चुके थे

तो उसके लिए बोले तो बोले क्या ? यह एक संकट हो गया

लेकिन मनहर तो मनहर थे



बिना एक क्षण गँवाए बोले-


लोभी तो देखे बहुत, आज देखलो लोभा

कविता सुनाने रही है कुमारी
शोभा

3 comments:

Unknown said...

यही तो विशेषता होती है कवि सम्मेलन के संचालक की!

सुन्दर संस्मरण! पढ़ कर आनन्द आया!!

Jandunia said...

आगे भी इस तरह की रचनाओं का इंतजार रहेगा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह खत्री जी!
बहुत बढ़िया संस्मरण लगाया है।
स्वर्गीय रामरिख "मनहर" जी को
याद करते हुए
उनको श्रद्धा-सुमन समर्पित करता हूँ।

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