Sunday, October 25, 2009

आज उसी की जेब से पौव्वा निकला

छोटी सी बात का बड़ा हौव्वा निकला

हंस जिसे समझे थे वो कौव्वा निकला

रोज़ हमको देता था नसीहत पीने की

आज उसी की जेब से पौव्वा निकला

________________हा हा हा हा हा हा
____________________________________________

यह मुक्तक

एक
ट्रक के पीछे लिखे वाक्य से

प्रेरित
होकर लिखा

इसलिए
अपना मौलिक नहीं,

थोड़ा
थोड़ा चोरी का माल भी शामिल है

...
हा हा हा हा

8 comments:

राजीव तनेजा said...

मज़ेदार ...

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया मुक्तक है......जरा हमारे वाली दो लाइन भी गौर फरमाए

पीने से डरते हैं ना पिलाने से डरते हैं।
मगर हम बिल चुकाने से डरते है।

दीपक 'मशाल' said...

Aapki sadgi aur sacchai achchhi lagi padh ke Albela sir, ye hamare kasbe ke paas ke hi ek achchhe kavi ne likha tha maine kareeb 10 saal pahle kavi sammelan me suna tha....
naam to nhin yaad lekin itna yaad hai ki unhone ek doosri bhi kavita padhi thi--
'ek neta kahin kho gaya hai, sookhe ke daure pe nikla tha parson
lagta hai pani-pani ho gaya hai..'

Unknown said...

परमजीतजी,
बिल चुकाने से मत डरो.........
बस..पिलाने की बात करो..........मज़ा आएगा..........


दीपकजी,

ये पंक्तियाँ उस कवि की भी नहीं हैं जिसकी आप बात कर रहे हैं क्योंकि मैं तो इन पंक्तियों को लगभग 25 वर्ष पूर्व एक ट्रक के पीछे पढ़ चुका हूँ जिनको सुधार के मैंने मेरे हिसाब से पोस्ट किया है

रही बात ' एक नेता कहीं खो गया है' कविता की तो ये मेरे वरिष्ठ कवि मित्र सरदार दिलजीत सिंह रील ( भोपाल ) की अत्यन्त सुप्रसिद्ध कविता है...........

ध्यान देने व दिलाने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !

Udan Tashtari said...

पव्वा मिल भी जाये तो उत्ते से में होगा क्या?


हा हा!!


मस्त है.

राज भाटिय़ा said...

अलबेला जी ओर परम जीत जी पहले मगवां लो पीने के बाद सोचना बिल कोन देगा, भाई अपून तो भुलकड है हमेशा पर्स घर भुल आते है:)
बहुत मजेदार,

M VERMA said...

आप तो ऐसे ना थे

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

हास्यकवि अलबेला खत्री जी!
छंद बढ़िया है।
आपका जवाब नही है।

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