Monday, June 7, 2010

अलबेला खत्री पर एक नापसंद का चटका लगादे ना भाई !





फोन करके धमकाने वाले 78

फोन पर समझाने वाले 37

फोन पर पुचकारने वाले 12

फोन पर बधाई और शाबासी देने वाले 169

__________वाह रे हिन्दी ब्लोगिंग !



स्तनों का जोड़ा 1

देखने वाले 10,000 से भी ज़्यादा

ब्लॉग पर स्तन दिखाने वाली महिला

नग्नता का विरोध करने वाला पुरूष

____उस पुरूष का विरोध करने वाले भी पुरूष ?

____वाह रे हिन्दी ब्लोगिंग !



स्तन दिखाऊ ब्लॉग ने टेम्पलेट बदल डाला

एग्रीग्रेटर ने तल्ख़ पोस्ट का शीर्षक बदल डाला

भाड़े के नापसन्दियों ने उत्साह उत्साह में

अलबेला खत्री के बजाय

रस्किन के वचन पर नापसंद का चटका लगा डाला


_____वाह रे हिन्दी ब्लोगिंग !



सारा ज़ोर,

सब तरह का ज़ोर

सभी विरोधियों का ज़ोर लगा कर भी नापसंद हैं कुल चार

जब कि भद्र और सुसंस्कृत नारी - लेखिकाएं हैं कई हज़ार

इसका अर्थ

जब मैंने लगाया तो समझ में ये आया

उनकी अपनी मण्डली में फूट है

सभी के मन में नफ़रत अखूट है

कहने को रिश्ता दिखता अटूट है

पर मुझे भी मिल रही खुली छूट है


समझ नहीं पा रहे अब भी अक्ल के अन्धे

कि मेरे इरादे नितान्त साफ़ हैं, नहीं हैं गन्दे

वरना चार नहीं,

अब तक चार सौ चटके लग चुके होते,

क्योंकि चालीस से ज़्यादा तो नारी के सदस्य ही हैं भाई !

इसके बावजूद फोन पर फोन किये जा रहे हैं

अलबेला खत्री पर एक नापसंद का चटका लगादे ना भाई !

लगाने वालों का भीषण टोटा है

अब बाप ही निर्णय करें

कौन खरा है और कौन खोटा है


____वाह रे हिन्दी ब्लोगिंग !

तू भी कमाल है, कमाल है, कमाल है !

बस एक पसन्द के चटके का सवाल है..............


@@@@@@@ कुछ समझ नहीं आया हो तो पाठकगण

कृपया यह लिंक देख लें ...सब समझ में आ जाएगा -


http://albelakhari.blogspot.com/2010/06/blog-post_9018.html#comments


जय हिंगलाज !
जय हिन्द !

-अलबेला खत्री

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10 comments:

Dev K Jha said...

लो लगा दिया पहला चटका. अभी खुश.

Mohammed Umar Kairanvi said...

अलबेले भाई, अगर कल यह सब न होता तो आज उससे भी शानदार बातें पढने को नहीं मिलती, मैं आपके फन का कद्रदान रहा हूं कल भी था, शाहनवाज भाई से आपकी कल की कविता पर बातें भी हुईं, आज भी (vote 2) हूँ

एग्रीगेटर का नाम आपने एग्रीग्रेटर ठीक दिया, हमने हमने अनवर जमाल के मामले में उसका नाम एग्री कटर दे रखा है

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ब्लागवाणी नै दिया है चटका एक
और कहते हो लगाएं चटका अनेक

चाह कर भी कैसे लगाएं अपनी टेक
जो सब देख रहे हैं वो हम रहे देख

हमको बताएं चटका कैसे लगाया जाता है
एक झटका देके चटका कैसे चलाया जाता है।

जय हो कविवर धन्य आपकी वाणी है
शीर्षक बदल जाए चमत्कारी ब्लागवाणी है।

राम राम

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अभी सलीम खान को बोलता हूँ चटका लगाने को :)

शिवम् मिश्रा said...

बहुत खूब ...............कल की उस पोस्ट पर भी मेरा यही कमेन्ट था आज भी यही ही है |

ओम पुरोहित'कागद' said...

लिखी है
सारी बात खरी
पढ़ कर
हो गई
तबीयत हरी !

ब्लाग
फेसबुक हो या ट्विटर
सब पर
स्त्रियोँ का राज है
अब जब
आ ही गए इधर
तो क्या लाज है?

स्तन ही
स्तवन है
इस जगत मेँ
कुछ देख रहे हैँ
कुछ दिखा रहे हैँ
आप क्योँ
घबरा रहे हैँ?

समझ कर समझो
कोई इलाज नहीँ
इस लाचारी का
बस ध्यान रखना
हमारे अलबेला ब्रह्मचारी का !

Randhir Singh Suman said...

n.....................................................

arvind said...

khatri saheb aapke blog ko naapasand kare koi ye kaise ho sakataa hai....? vaise duniya ko hansanevaale logon ke khilaf aisa ho bhi sakataa hai.....kuchh loge hansi our khushi se bhi jalate hain.

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब ...........

संजय भास्‍कर said...

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

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