Wednesday, May 26, 2010

जो सास ही को न पीटे तो फिर बहू क्या है





ग़ालिब साहिब ने फ़रमाया :

रगों में दौड़ने के हम नहीं कायल ग़ालिब

जो आँख ही से टपके तो फिर लहू क्या है



किसी ने इसमें तड़का लगाया

घर में शान्ति से रहने के हम नहीं कायल भैया

जो सास ही को पीटे तो फिर बहू क्या है .............



www.albelakhatri.com



13 comments:

माधव( Madhav) said...

हा हां हां ...............

Ra said...

दोनों ही जबरदस्त है :):):)

SANJEEV RANA said...

अलबेला साहब अच्छा लगा और पसंद के बटन पे अपनी पसंद का चटकारा भी लगा दिया

Anonymous said...

समंदर शांत हो औ चाहे उछलती हो लहरें
अमिताभ बच्चन वहां न रहें तो जुहू क्या है?

साथ रहने में ही मज़ा है संता-बंता का
जैसे बिना पतवारू के घुरहू क्या है

Shah Nawaz said...

वह क्या बात है!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भाई आप तो घर में महाभारत शुरू कराने का इन्तजाम किए हैं...कम से कम दो चार तो इस पोस्ट से प्रेरित हो ही जायेंगी :-)

arvind said...

घर में शान्ति से रहने के हम नहीं कायल भैया

जो सास ही को न पीटे तो फिर बहू क्या है .............हा हां हां

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ha-ha-ha-ha-ha.....Badhiyaa sher maaraa aapne .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मजा आ गया साहिब!
जय हो!

ओम पुरोहित'कागद' said...

भाई अलबेला जी,
राम राम जी!
इधर सब राजी खुशी हैँ।बिरखा पानी है नहीँ।खेती बाड़ी सूख गई।अतः अधिकांश बहूएं पीहर चली गईँ हैँ इस लिए इधर की सासेँ सुरक्षित हैँ।उधर की सुनाओ।
आपकी कविता पर पर्दा कैसे डालूं ताकि बहूओँ के लौटने पर घर मेँ कोहराम न मचे।
वैसे मैँने भी पत्नी केन्द्रित अगणित कुचरणियां राजस्थानी भाषा मेँ लिखी हैँ।अतः घर मेँ रोटी कम ही खा पाता हूं।

ओम पुरोहित'कागद' said...

लो पढ़ो-
एक दिन
म्हारी घर आळी बोली
जे थां नै
साग नीँ भावै तो
पापड़ तळ द्यूं
मैँ बोल्यो
तूं ऊंदा काम
ना करिया कर
तूं म्हने तो रोज तळै
बापड़ै पापड़ नै तो
बख्श दिया कर !

पंकज मिश्रा said...

kya kahne.

संजय भास्‍कर said...

मजा आ गया

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